सोनभद्र: स्थानीय संसाधनों से आत्मनिर्भर बनने का प्रधानमंत्री का मंत्र सोनभद्र जैसे पिछड़े और आदिवासी जिले में भी दिखना शुरू हो गया है. सोनभद्र में रहने वाले आदिवासियों द्वारा परंपरागत तौर पर बनाए जाने वाले बांस के उत्पाद में सिर्फ बाजार का रूप ले रहे हैं, बल्कि विदेशों से भी अब इनकी मांग आनी शुरू हो गई है. कोविड-19 की आपदा में अवसर की तलाश करते हुए जिला प्रशासन ने आजीविका मिशन के तहत ग्रामीणों को प्रशिक्षण देकर बांस के उत्पादों को मशीनों से प्रस्तुत करने का काम शुरू कराया गया. जिससे बांस के उत्पादों की मांग न सिर्फ देश में हो रही है, बल्कि विदेशों से भी इसके लिए आर्डर आ रहे हैं.
प्रशिक्षण प्राप्त ग्रामीण बांस से तरह-तरह के बना रहे उत्पाद
कोविड-19 जैसी आपदा के समय जिला प्रशासन की पहल से ग्रामीण आदिवासियों को जो कि बांस का परंपरागत कार्य सदियों से करते आ रहे हैं, प्रशिक्षण उपलब्ध कराया गया था. प्रशिक्षण प्राप्त ग्रामीण अब सूप, डलिया, खिलौने जैसे उत्पादों के साथ-साथ अब बांस से बने शोपीस, सजावटी सामान, कप सर्विस ट्रे, बांस का सोफा और बेड समेत अन्य सामान बना रहे हैं. चोपन ब्लॉक के पटवध गांव के दस से अधिक ग्रामीण इस समय बांस का सामान बनाने में लगे हुए हैं. धरिकार जाति के ये ग्रामीण पीढ़ियों से बांस का सामान बनाते रहे हैं. प्रशिक्षण के बाद अब इनके बनाए हुए आधुनिक सामानों की मांग स्थानीय बाजार के साथ-साथ देश और विदेश में भी हो रही है. जिससे ग्रामीणों को आर्थिक लाभ भी मिल रहा है.