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दिन में तीन बार रंग बदलता है यह स्वयंभू शिवलिंग - शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलता है

उत्तर प्रदेश के सीतापुर में नीलगांव के पश्चिम में स्थित शिवलिंग दिन में तीन बार अपना रंग बदलता है. इस शिवलिंग का उल्लेख शिव महापुराण सहित कई अन्य ग्रंथों में मिलता है.

तीन बार रंग बदलता है स्वयंभू शिवलिंग.
तीन बार रंग बदलता है स्वयंभू शिवलिंग.

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Published : Jan 7, 2021, 1:16 PM IST

सीतापुर: जिला मुख्यालय से 52 किलोमीटर दूर नीलगांव के पश्चिम में एक शिवमंदिर स्थित है. ऐसी मान्यता है कि यहां स्थित शिवलिंग दिन में तीन बार अपना रंग बदलता है. इस शिवलिंग के दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. इस शिवलिंग का उल्लेख शिव महापुराण सहित कई अन्य ग्रंथों में मिलता है. शिवलिंग के विषय में नीलगांव के निवासी पं. कृष्ण बिहारी अवस्थी ने अपनी पुस्तक बुढ़वा पच्चीसी में पुराणों के आधार पर काव्य के रूप में विस्तार पूर्वक व्याख्यान किया है.

बूढ़े बाबा के नाम से भी जाना जाता है शिवलिंग
महाभारत काल में जब पाण्डव वनवास के दौरान धौम्य ऋषि के आश्रम (वर्तमान समय में बाराबंकी और सीतापुर बार्डर पर बसे नीलगांव के पूर्व जंगल के बीच स्थित मनमोहक विशाल सरोवर के पास) पहुंचे. वहां सभी ने कई माह बिताए. इस दौरान एक दिन धौम्य ऋषि ने युधिष्ठिर, अर्जुन सहित सभी पाण्डवों से कहा कि आप सभी यहां से कुछ मील दूर पश्चिम दिशा में जाएं. वहां आपको भगवान शिव के दर्शन होंगे. तब पाण्डव उस स्थान पर पहुंचे. जहां उन्हें एक बुजुर्ग शख्स मिले. जिसके बाद सभी पाण्डव ऋषि के पास लौट आए. उन्होंने धौम्य ऋषि से बताया कि उन्हें वहां पर एक बुजुर्ग शख्स मिले थे. धौम्य ऋषि अपने साथ पाण्डवों को लेकर उसी स्थान पर पुन: पहुंचे. तब पाण्डवों ने देखा कि वह बूढे से व्यक्ति एक शिवलिंग के रूप में परिवर्तित हो रहे हैं. सभी पाण्डवों ने भगवान शिव की पूजा अर्चना की और आशीर्वाद प्राप्त किया. द्वापरयुग से ही इस शिवलिंग को बूढ़े बाबा के नाम से जाना जाता है.

तीन बार रंग बदलता है स्वयंभू शिवलिंग.

नहीं मिला शिवलिंग का अंत
सन् 1835 में नीलगांव के राजा भवानीदीन सिंह हुए. उस दौरान उन्होंने यहां पर एक छोटा सा मंदिर बनवाया. काफी समय बाद 1901 में ठाकुर लालता बक्श सिंह नीलगांव की गद्दी पर बैठे और उन्होंने यहां पर एक भव्य शिव मंदिर का निर्माण कराया. मंदिर की चोटी पर लगे कलश और त्रिशूल बीस किलो सोने से निर्मित है. जिसकी सुनहरी छटा 120 वर्ष बाद भी दूर से ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है. इस मंदिर के निर्माण के बाद राजा लालता बक्श सिंह इस शिवलिंग को मंदिर के गर्भगृह में स्थापित कराना चाहते थे. शिवलिंग को निकालने के लिए उसे जितना खोदा जा रहा था, उतना ही शिवलिंग नीचे की ओर बढता जा रहा था. पानी की सतह तक खुदाई की गई, लेकिन शिवलिंग का अंत नहीं मिला. इसी बीच राजा को एक रात सपना आया कि जहां शिवलिंग है, उसे वहीं रहने दें. जिसके बाद राजा ने शिवलिंग के आसपास खोदी गई मिट्टी को पटवा दिया.

रंग बदलता है शिवलिंग
इस शिवलिंग की विशेषता यह है कि यह दिन में तीन बार अपना स्वरूप (रंग) बदलता है. सुबह शिवलिंग का रंग श्वेत (कपूर की भांति), दोपहर में काले रंग में परिवर्तित होता है और शाम के समय पीले रंग में बदल जाता है.

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