सीतापुर:धार्मिक परंपराएं और अध्यात्म से जुड़ेजिले के मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर कुर्सी गांव के समीप आदि गंगा नदी के तट पर स्थित एक ऐसा पीपल का वृक्ष है, जिसकी पत्तियों को खाकर महर्षि पिप्पलाद बड़े हुए. भगवान शिव के 19 अवतारों में से एक अवतार महर्षि पिप्पलाद का था. महर्षि पिप्पलाद के स्मरण मात्र से ही शनि देव द्वारा दी गई पीड़ा दूर हो जाती है.
पिपरी बाबा स्थान का उल्लेख शिवमहापुराण सहित कई अन्य ग्रन्थों में मिलता है. वृक्ष के पास एक सतयुग काल का शिवलिंग स्थापित है. इस स्थान के समीप दो शिव मदिंर स्थित है. मदिंर में प्रतिदिन भारी संख्या में लोग पहुंचते हैं. मदिंर में आने वाले सभी श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है.
महर्षि दधीचि की हड्डियों से बना बज्र
पूराणों में वर्णित कथाओं में जब देवलोक पर वृत्रासुर दैत्य के बल के आगे देवता टिक नहीं सके थे, तब देवता ब्रम्हा जी के पास पहुंचे और वृत्रासुर के अतं का उपाय पूछा, तो देवराज इन्द्र को यह ज्ञात हुआ कि महर्षि दधीचि की हड्डियों से बनने वाले बज्र से ही वृत्रासुर दैत्य का वध करना सम्भव है, तब देवराज इन्द्र पृथ्वी लोक पर स्थित महार्षि दधीचि के आश्रम (नैमिष क्षेत्र के मिश्रिख) पहुंचे और महर्षि दधीचि को यह बृतान्त्र बताया. महार्षि दधीचि ने सहज ही अपनी हड्डियों का दान दे दिया.
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वृत्रासुर राक्षस का वध
महर्षि दधीचि की हड्डियों से बनाये गये बज्र से देवराज इन्द्र ने वृत्रासुर राक्षस का वध किया था. महर्षि दधीचि की पत्नी गभस्तिनी को यह जब पता चला कि उनके पति ने अपने शरीर का त्याग कर दिया है और स्वर्ग चले गये है, तो वह भी सती हो जाने का प्रण कर के आदि गंगा गोमती नदी के तट होते हुए नैमिष क्षेत्र चली गई. वहां आश्रम से लगभग 25 किलोमीटर दूर आदि गंगा नदी के तट पर स्थित एक पीपल के वृक्ष के पास ठहर गई. क्योंकि वह उस समय गर्भ से थी, तो उन्होंने गर्भस्थ शिशु को पीपल के वृक्ष के पास पेट चीर कर रख दिया और वह सती हो गईं.