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सीतापुर: सड़क पर श्रद्धालुओं की जगह दिखी पुलिस, सोमवती अमावस्या पर पसरा सन्नाटा - सीतापुर नैमिषारण्य धाम

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में प्रसिद्ध नैमिषारण्य तीर्थ स्थल में इस बार सोमवती अमावस्या पर श्रद्धालु नहीं पहुंचे. कोरोना महामारी के खतरे को देखते हुए नगर में बड़ी संख्या में पुलिस बल की मौजूदगी रही, जिसके चलते सड़कों और घाटों पर सन्नाटा पसरा रहा.

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सोमवती अमावस्या पर नहीं दिखे श्रद्धालु.

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Published : Jul 20, 2020, 10:39 PM IST

सीतापुर:जिले में अट्ठासी हजार ऋषियों की पावन तपोभूमि के नाम से सुविख्यात नैमिषारण्य में इस बार सावन मास की सोमवती अमावस्या पर श्रद्धालु नहीं पहुंचे. पुनीत संयोग होने के बावजूद भी लोगों में कोरोना महामारी का डर देखने को मिला. नगर में बड़ी संख्या में पुलिस बल की मौजूदगी रही, जिसके चलते चक्र तीर्थ, गोमती घाटों के साथ ही नगर के प्रमुख मन्दिर मां ललिता देवी, व्यास गद्दी , हनुमान गढी , देवदेवेश्वर, सूतगद्दी, बाला जी, कालीपीठ, सत्यनारायण सन्निधि आश्रम आदि प्रमुख स्थानों और नगर की सड़कों पर सन्नाटा पसरा रहा.

सोमवती अमावस्या पर नहीं दिखे श्रद्धालु.

सड़क पर दिखा भारी पुलिस बल
प्रशासन द्वारा जारी गाइडलाइन के चलते अमावस्या पर आसपास के क्षेत्रों से श्रद्धालु अपने निजी वाहनों से आते दिखाई दिए. नैमिष में इंट्री करने वाले सभी मार्गों पर बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात रहा. श्रद्धालुओं को बिना दर्शन-पूजन के ही वापस होना पड़ा. वैसे तो सावन मास पर शिव भक्ति के लिए अपना अलग ही महत्व होता है और जब सावन में सोमवती अमावस्या का योग पड़ता है, तो यह संयोग काफी महत्वपूर्ण हो जाता है.

सोमवती अमावस्या का होता है विशेष महत्व
मान्यता है कि यह दिन भगवान शिव को समर्पित पूजा-पाठ, रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप विशेष फल प्रदान करने वाला होता है. सोमवार और सोमवती अमावस्या पर्व के बावजूद कोरोना महामारी के दुष्प्रभाव के चलते नगर के प्रमुख शिव मंदिर भूतेश्वर नाथ, देवदेवेश्वर महादेव, सिद्धेश्वर महादेव, रामेश्वरम महादेव, काशी विश्वनाथ, महामृत्युंजय पीठ आदि सुबह पूजन के बाद दर्शनार्थियों के लिए बंद कर दिए गए.

हिंदू संस्कृति का महत्व
पुराणों के अनुसार हरियाली अमावस्या का महत्व हिंदू संस्कृति में हर तिथि, वार देवों के साथ जुड़कर विशेष बन जाता है. सभी हिंदी महीने कुछ खास विशेषता लिए होते हैं. भारतीय काल गणना में 12 मास के 24 दिन अपने आप में ही पर्व के दिन हैं. इनमें 12 अमावस्या, 12 पूर्णिमा, पहला पखवाड़ा कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष है. पहले 14 दिन चंद्रमा की कलाएं क्षीण होती हैं और 15वें दिन चंद्रमा लुप्त होते ही अमावस्या हो जाती है.

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