सीतापुर में 84 कोसी परिक्रमा का शुभारंभ सीतापुरः जनपद के नैमिषारण्य में सदियों से चली आ रही 84 कोसी परिक्रमा (84 Kosi Parikrama) का मंगलवार को गगनभेदी जयकारों के साथ आगाज हुआ. परिक्रमा समिति के अध्यक्ष महंत नन्हकू दास के डंका बजाते ही विभिन्न प्रांतों से आए साधु-संत और श्रद्धालु परिक्रमा के पहले पड़ाव के लिए कूच कर गए. परिक्रमा समिति अध्यक्ष अपने विशेष रथ के साथ पहले पड़ाव के लिए रवाना हुए, तो तमाम साधु-संत हाथी घोड़े और पालकियों से यात्रा करते नजर आए.
गौरतलब है कि परिक्रमा के दौरान ईश्वर के प्रति आस्था और श्रद्धा का अनूठा संगम देखने को मिला. साधु-संतों ने रास्ते भर भजन कीर्तन किया. इन पर परिक्रमार्थी झूमते हुए नजर आए. 84 लाख योनियों से मुक्ति देने में सहायक मानी जाने वाली इस परिक्रमा में प्रदेश के अलग-अलग जिलों के अलावा मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, दिल्ली समेत तमाम प्रांतों से लाखों श्रद्धालु परिक्रमा शामिल हुए. दोपहर तक परिक्रमार्थी अपने पहले पड़ाव पहुंच गए और रात्रि यहीं विश्राम करने के बाद सुबह अपने अगले पड़ाव जनपद हरदोई के हर्रैय्या के लिए रवाना होंगे.
ब्रम्ह मुहूर्त में एसडीएम मिश्रिख, नगर पालिका ईओ ने पहला आश्रम महंत समेत परिक्रमा में आए संतो का माल्यार्पण और पुष्प वर्षा कर पूजन किया. परिक्रमार्थियों के जत्थे को पहले पड़ाव कोरौना के लिए रवाना किया. इस दौरान उन्होंने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए परिक्रमा पथ का मैप बांटा गया. मौके पर सीओ मिश्रिख, कोतवाल, ललिता देवी मंदिर पुजारी समेत बड़ी संख्या में स्थानीय पुरोहित और भक्त मौजूद रहे.
पहले पड़ाव पर बसी श्रद्धालुओं की नगरी: परिक्रमा के पहले पड़ाव कोरौना-जरिगवां में रामादल ने आस्था की नगरी बसाई है. यह स्थल अपने आप में पौराणिक इतिहास समेटे हुए है. महार्षि दधीचि ने यहां पहला पड़ाव डाला था. वहीं त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने परिक्रमा के दौरान इस स्थान पर आकर विश्राम किया था. मान्यता है कि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण भी इस धरती पर पहुंचे थे. भगवान श्रीकृष्ण के पदार्पण के कारण ही इस स्थान पर द्वारिकाधीश मंदिर स्थापित किया गया है. मंदिर के करीब ही तीर्थ मौजूद है, जिसमें परिक्रमा के दौरान आने वाले श्रद्धालु स्नान करते हैं. इस बार यहां ऐतिहासिक व पौराणिक बराह कूप के दर्शन इस बार श्रद्धालुओं को हो सकेंगे. मान्यता है कि वनवास के दौरान पांडव भी इसी धरती पर आए थे. पांडवों ने जिस स्थान पर अश्वमेघ यज्ञ किया और मंत्रोच्चारण के साथ आहुतियां दीं थीं. उसी आहुति स्थान को बराह कूप कहते हैं.
कार और बैलगाड़ियां आईं नजर:परिक्रमा करने के लिए पैदल भी चल रहे थे. इसके साथ ही लग्जरी वाहनों से लेकर बैलगाड़ियों का इस्तेमाल भी किया गया. तमाम साधु-संत अपनी कारों से परिक्रमा करते दिखे, तो स्थानीय लोग बैलगाड़ी, ट्रैक्टर ट्राॅली से भी परिक्रमा कर रहे हैं.
परिक्रमार्थियों के लिए भंडारे:परिक्रमार्थियों की सेवा सत्कार में स्थानीय लोगों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. ग्रामीणों ने देश के विभिन्न प्रांतों से आए हुए श्रद्धालुओं और पौराणिक 84 कोसी परिक्रमा में शामिल रामादल के लिए जलपान की व्यवस्था की थी. परिक्रमार्थियों को हलवा और चना प्रसाद रूप में वितरित किया गया. इसके अलावा अन्य तमाम स्थानों पर भी प्रसाद वितरण किया गया.
स्वास्थ्य टीमें तैनात, पुलिस रही मुस्तैद:परिक्रमा के दौरान श्रद्धालुओं को दिक्कतों का सामना न करना पड़े, इसके लिए जगह-जगह स्वास्थ्य टीमें लगाई गईं. साथ ही परिक्रमार्थियों के आगे व पीछे एक-एक स्वास्थ्य टीमें मुस्तैद रही. वहीं, नैमिषारण्य से लेकर पूरे परिक्रमा मार्ग पर चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल मुस्तैद रहा.
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