सीतापुर: उत्तर भारत का सबसे प्राचीन और धार्मिक महत्व का 84 कोसी परिक्रमा 24 फरवरी को प्रातः नैमिषारण्य के चक्रतीर्थ से प्रारंभ होगा. इस परिक्रमा में शामिल होने के लिए साधु, सन्यासियों और महंतों के साथ गृहस्थों ने नैमिषारण्य पहुंचना शुरू कर दिया है. आश्रमों में हाथी, घोड़ा और पालकी को संवारने का काम किया जा रहा है. वहीं प्रशासन ने भी इस बार परिक्रमा के लिए रथ और परिक्रमार्थियों पर पुष्पवर्षा कराने का इंतजाम किया है.
महर्षि दधीचि की स्मृति में यह 84 कोसी परिक्रमा सतयुग काल से होता चला आ रहा है. कहा जाता है कि त्रेता युग में भगवान राम ने स्वयं यह परिक्रमा की थी, जिसके चलते परिक्रमार्थियों को रामादल के नाम से भी पुकारा जाता है.
फाल्गुन मास की प्रतिपदा से यह परिक्रमा प्रारंभ होती है और 11 पड़ाव पूरे करने के बाद मिश्रित तीर्थ पहुंचकर पंचकोसीय परिक्रमा में परिवर्तित हो जाता है. होलिका दहन के साथ ही इस परिक्रमा का समापन हो जाता है.
परिक्रमा का पहला पड़ाव कोरौना है. यहां पर परिक्रमार्थी राधाकुंड में स्नान कर शिवमन्दिर और द्वारिकाधीश मंदिर में दर्शन करते हैं. इसके बाद कैलाश आश्रम होते हुए हरैया पहुंचते हैं. इसके बाद परिक्रमा हत्या हरण पहुंचता है, जहां पर द्रोणाचार्य द्वारा स्थापित शंकर जी का मंदिर है उसका दर्शन किया जाता है.