श्रावस्ती : विदेशी मेहमानों से तथागत भगवान बुद्ध की तपोस्थली श्रावस्ती गुलजार है. जी हां! सहेट- महेट के झुरमुटों के बीच ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक भग्नावशेष की छटा विदेशी मेहमानों को सम्मोहित कर रही है. शहर के कोलाहल से दूर श्रावस्ती की माटी पर शांति देने वाला बोधि वृक्ष, चिंतन शिविर, ध्यान, भक्ति और योग के अलावा यहां खड़े कोरिया, थाईलैंड, श्रीलंका, तिब्बत, चीन, जापान, कंबोडिया आदि देशों के चमचमाते मठ- मंदिर दुनिया भर से आने वाले पर्यटकों को शांति का संदेश दे रहे हैं. श्रावस्ती का गौरवशाली अतीत महत्वपूर्ण रहा है.
श्रावस्ती के इतिहास पर अध्ययन कर रहे पूर्व प्रवक्ता विजय नाथ द्विवेदी के अनुसार, महाकवि कालीदास ने रघुवंशम् में श्रावस्ती का विस्तृत वर्णन किया है. कहा गया है कि भगवान राम ने अपने पुत्र लव को श्रावस्ती का राजा बनाया था. श्रावस्ती क्षेत्र को सहेट-महेट के नाम से भी जाना जाता है. यहां प्रतिवर्ष श्रीलंका, जापान, कोरिया, कंबोडिया, वर्मा, तिब्बत, थाईलैंड, चीन, इंडोनेशिया, भूटान, म्यामांर, सिंगापुर, नेपाल समेत 36 देशों से तकरीबन एक लाख से अधिक पर्यटक आते हैं. इनमें 50 फीसदी से ज्यादा श्रीलंका, म्यामार और थाईलैंड के पर्यटक होते हैं.
महाप्रजापति गौतमी भिक्षुणी प्रशिक्षण केंद्र श्रावस्ती के संचालक बौद्ध भिक्षु देवेंद्र थेरो ने बताया कि अक्टूबर से मार्च तक विदेशी मेहमानों के आने का पीक सीजन होता है, क्योंकि इसी दौरान बौद्ध एवं जैन धर्मावलंबियों का अधिकांश पर्व यहां मनाए जाते हैं. देवेंद्र थेरो बताते हैं कि यहां स्थित अंगुलिमाल गुफा, दुर्दांत डाकू अंगुलिमाल के हृदय परिवर्तन की घटना वाली कथा पर्यटकों में भगवान बुद्ध के प्रति आस्था बढ़ाती है.