श्रावस्ती : इंडो-नेपाल सीमा पर पहाड़ों की तलहटी में बसे गांवाें तक जाने वाले रास्ते मुश्किलाें से भरे हैं. इन्हीं से गुजर कर एएनएम दमयंती मौर्या लाेगाें तक स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करा रहीं हैं. वह लगभग 34 सालाें से गर्भवती और बच्चाें काे स्वस्थ बनाए रखने का बीड़ा उठा रहीं हैं. महज एक फाेन पर वह ग्रामीणाें की सेवा में हाजिर हाे जाती हैं. हर कोई उन्हें एएनएम दीदी कहकर बुलाता है.
मोतीपुर कला, मसहा कला और बभनी कुकुरभुकवा गांव पहाड़ों की तलहटी में बसे हैं. इन गांवाें में आदिवासी थारू जनजाति के लाेग रहते हैं. इन गांवाें तक जाने वाले रास्ते दुर्गम हैं. इसके बावजूद एएनएम दमयंती ग्रामीणाें के बीच पहुंच कर उन्हें सरकार की याेजनाओं की जानकारी दे रहीं हैं. गर्भवती और बच्चाें का टीकाकरण करा रहीं हैं.
एएनएम दीदी कहकर बुलाते हैं लाेग : ग्रामीण बताते हैं कि दमयंती बलिया जिले की मूल निवासी हैं. वह काफी मिलनसार हैं. वह नियमित गांव में आती-जाती रहती हैं. गांव की महिलाओं और बच्चाें काे काेई स्वास्थ्य संबंधी परेशानी आने पर वह एक फाेन पर पहुंच जाती हैं. ग्रामीणों की सेवा करने के उद्देश्य से उन्हाेंने बभनी कुकुरभुकवा गांव में अपना स्थायी मकान भी बना लिया है. क्षेत्र का हर शख्स उन्हें एएनएम दीदी कहकर बुलाता है. अपना मकान होने के बावजूद भी वह रात में यहां से 5 किमी दूर मोतीपुर कला के स्वास्थ्य उपकेंद्र पर ठहरती हैं.