शामलीःशामली में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए 70 वर्षीय पाकिस्तानी नागरिक को आतंकी मामले में 19 साल जेल में बिताने के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बरी कर दिया. बीते तीन सालों से वह शामली जिले के एक थाने में पुलिस की निगरानी में रह रहा है. जानकारी मिली है कि पाकिस्तान सरकार ने उसे अपना नागरिक मानने से ही इनकार कर दिया है. इस वजह से वह घर नहीं लौट पा रहा है.
दरअसल, पाकिस्तान के गुजरांवाला के वजीराबाद निवासी मोहम्मद वारिस उर्फ रजा को सन् 2000 में 48 साल की उम्र में शामली के कांधला थाने की पुलिस ने जोला गांव से गिरफ्तार किया था. पुलिस ने वारिस के कब्जे से कुछ हथगोले और बंदूके बरामद होने का दावा किया था.
पुलिस द्वारा घर के मालिक अशफाक नन्हे समेत चार स्थानीय नागरिकों की भी गिरफ्तारी की थी. पुलिस ने एक जांच के बाद कहा था कि उन्होंने वारिस और आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के बीच संबंधों का पता लगाया है और उस पर आईपीसी की धारा 121 (देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने का प्रयास) के तहत मामला दर्ज किया गया है.
सभी आरोपियों पर आईपीसी की धारा 121-ए (धारा 121 के तहत अपराध करने की साजिश), 122 (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के इरादे से हथियार आदि इकट्ठा करना) और 123 (युद्ध करने की परिकल्पना को सुगम बनाने के आशय से छिपाना) के तहत आरोप लगाया गया था. वारिस पर विदेशी अधिनियम, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम और पासपोर्ट अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत अतिरिक्त आरोप लगाए गए थे.
2017 में मुजफ्फरनगर की ट्रायल कोर्ट ने धारा 121 के तहत वारिस और अशफाक नन्हे को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. हालांकि वारिस को पासपोर्ट अधिनियम और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के आरोपों के तहत बरी कर दिया गया था. कोर्ट ने अन्य आरोपितों को सभी आरोपों से बरी कर दिया. इसके बाद वारिस को बरेली जेल में भेज दिया गया था. 2007 में वारिस ने बरेली जेल से दोषी न होने का अनुरोध किया था. उसने अदालत को बताया था कि उसके पास से कोई बरामदगी नहीं हुई. वह एक वैध पासपोर्ट पर भारत आया था, लेकिन पुलिस ने कांधला पुलिस स्टेशन पर बहस के बाद उसका पासपोर्ट फाड़ दिया था.
2019 में इलाहाबाद HC ने वारिस द्वारा बरेली की जेल से दायर एक अपील पर सुनवाई की. अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष की ओर से "गंभीर संरचनात्मक विसंगतियां" पाई गईं हैं, और राजद्रोह के मामले में केंद्र या राज्य सरकार से मंजूरी भी नही ली गई थी. 5 अगस्त, 2019 के अपने आदेश में, HC ने कहा "यह वास्तव में आश्चर्यजनक है कि अभियोजन पक्ष को इस बात की जानकारी नहीं थी कि IPC के अध्याय VI के तहत दंडनीय अपराधों के लिए एक सक्षम प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करने की वैधानिक आवश्यकता थी. सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार की दो न्यायाधीशों की पीठ ने आईपीसी की धारा 121, 121-ए, 122 और 123 के तहत अपीलकर्ताओं की दोष सिद्धि को रद्द कर दिया जबकि पीठ ने विदेशी अधिनियम के तहत निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें उसे तीन साल की कैद होनी थी, लेकिन वारिस पहले ही 19 साल जेल में बिता चुका था, इसके चलते उसे दिसंबर 2021 में जेल से रिहा कर दिया गया.
इस मामले में जब जिले के वरिष्ठ अधिकारियों से वार्ता की गई तो उन्होंने सीधे तौर पर पूरे मामले की जानकारी होने से इनकार कर दिया, लेकिन नाम सार्वजनिक न करने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया कि वारिस को पाकिस्तान इसलिए नही भेजा जा सका क्योंकि पाकिस्तान सरकार ने उसे अपना नागरिक मानने से इंकार कर दिया था. यह भी जानकारी मिली है कि इस मामले में दोनों देशों के बीच बातचीत चल रही है. जेल से रिहा होने के बाद भी उसे सार्वजनिक रूप से नही रखा गया है, क्योंकि वह एक पाकिस्तानी नागरिक है.
सूत्रों के मुताबिक वह शामली जिले के थाने में पुलिस की निगरानी में रह रहा है. यह भी सामने आया है कि मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष के हाथों संरचनात्मक खामियों कारण उसकी रिहाई हो गई है. पाकिस्तानी नागरिक मोहम्मद वारिस का गुलजार नाम का एक लड़का भी बताया जाता है, जो गुजरांवाला में दूध का कारोबार करता है, लेकिन इस पूरे मामले में अधिकारी सीधे तौर पर कोई जानकारी नही दे पा रहे हैं. फिलहाल जेल से रिहाई के बाद भी वारिस को घर लौटने का इंतजार है.
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