शाहजहांपुर की ददरौल विधानसभा: लोधी बहुल सीट पर कभी कांग्रेस का था राज, इतिहास दोहराने को पंजा बेताब - Congress Party
1952 में अस्तित्व में आई शाहजहांपुर की ददरौल विधानसभा (Dadraul Assembly) ने सबसे ज्यादा कांग्रेस को फायदा पहुंचाया. जानकारों के मुताबिक, यहां लोध समाज के सर्वाधिक किसान मतदाता हैं. जबकि, अल्पसंख्यक समुदाय और यादव बिरादरी के भी वोटर ठीक-ठाक संख्या में हैं. कहते हैं जिस ओर इन मुख्य जातियों का झुकाव होता है वो उम्मीदवार विधानसभा का सफर तय करता है.
ददरौल विधानसभा की डेमोग्राफिक रिपोर्ट
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Published : Oct 17, 2021, 5:23 PM IST
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Updated : Oct 17, 2021, 8:37 PM IST
शाहजहांपुर: उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जनपद में 6 विधानसभा सीटे हैं. यहां भी जातीय समीकरण हावी है. जिले में सबसे अधिक लोध (वर्मा किसान) वोटर हैं, जो पार्टियों की चुनावी दशा को तय करते हैं. आज हम उन 6 विधानसभाओं में से ददरौल विधानसभा-136 (Dadraul Assembly 136) के चुनावी समीकरण पर नजर डालेंगे. इस सीट का इतिहास कांग्रेस पार्टी (Congress Party) को सुकून देने वाला है. वैसे वर्तमान में यह सीट भाजपा के खाते में है. यहां से बीजेपी के मानवेंद्र सिंह (BJP MLA MANVENDRA SINGH) सीटिंग विधायक हैं. इस इलाके की खास बात यह है कि यहां सबसे अधिक उद्योग स्थापित हैं. इस क्षेत्र के हिस्से में मेडिकल कॉलेज भी है.
शाहजहांपुर की 136-ददरौल विधानसभा मार्च 1952 में अस्तित्व में आई थी. यह विधानसभा शहर के साथ-साथ हरदोई और लखीमपुर जिले की सीमा से ही कटी हुई है. ददरौल विधान सभा में कुल मतदाताओं की संख्या 3,51,225 है, जिसमें पुरुष मतदाता 1,91,371, महिला मतदाता 1,59,801 और अन्य महज 53 हैं. ददरौल विधानसभा क्षेत्र लोध वोट के लिए जाना जाता है. यहां वर्मा वर्ग के किसानों की आबादी सबसे अधिक है. यहां से वर्ष 2012 में समाजवादी पार्टी के राममूर्ति सिंह वर्मा ने जीत हासिल की थी, जिसके बाद उन्हें सपा सरकार में पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री बनाया गया था. वर्ष 2017 की बात करें तो ददरौल विधानसभा से भारतीय जनता पार्टी से मानवेंद्र सिंह जीतकर विधानसभा पहुंचे.
ददरौल विधानसभा क्षेत्र में वर्ष 1962 के चुनाव में पहली बार कांग्रेस का खाता खुला और वह राममूर्ति अंचल देव नारायण भारतीय को हराकर विधायक निर्वाचित हुए. 1967 और 1969 के चुनाव में भी वही विधायक चुने गए. 1974 में कांग्रेस के गिरिजा किशोर मिश्र निर्दलीय मंसूर अली को परास्त कर विधायक बने. इमरजेंसी के बाद कांग्रेस विरोधी लहर के बीच साल 1977 में निर्दलीय मंसूर अली ने कांग्रेस के खेवराज को हराकर विधायक की कुर्सी पर कब्जा कर लिया. वर्ष 1980 में जेएनपी (एससी) के नाजिर अली ने जेएनपी (एसआर) के प्रत्याशी काली चरन को हराकर विधायक बनने का गौरव हासिल किया. वर्ष 1985 में यह सीट फिर कांग्रेस की झोली में गई और निर्दलीय नाजिर अली को हराकर कांग्रेस के रामऔतार मिश्रा विधायक बने. साल 1989 में फिर रामऔतार मिश्रा विधायक चुने गए, लेकिन साल 1991 में वह जनता दल प्रत्याशी देवेंद्र पाल सिंह से 7520 मतों से पराजित हो गए. वर्ष 1991 में फिर कांग्रेस के राम औतार मिश्रा ने भाजपा के मिट्ठूलाल को 18896 को हराकर फिर से परचम फहराया. 1996 के चुनाव में फिर मिट्ठूलाल को विधायक बनने का गौरव हासिल हुआ.
2002 के चुनाव में पहली बसपा के प्रत्याशी ने चुनाव जीता था. 2007 में यह सीट बसपा के खाते में थी. अवधेश कुमार वर्मा साल 2007 में हुए विधानसाभा के चुनाव में बसपा की टिकट पर चुनाव जीते और बीएसपी की सरकार में पिछड़ा वर्ग कल्याण राजमंत्री भी बने. 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा सुप्रीमो मायावती ने अवधेश कुमार वर्मा को पार्टी से बाहर निकाल दिया था. इसके बाद अवधेश कुमार वर्मा ने भाजपा से चुनाव लड़ा और बीएसपी ने रिजवान अली को मैदानमें उतारा. बसपा और भाजपा की लड़ाई का सपा को सीधा फायदा मिला. 2012 विधानसभा चुनाव में सपा के राममूर्ति सिंह वर्मा ने बसपा प्रत्याशी रिजवान अली को हराकर विधायक बने.