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भदोहीः कभी मकर संक्रांति की पहचान था चूड़ा, आधुनिकीकरण की दौड़ में हुईं गायब - भदोही समाचार

आधुनिकता ने मकर संक्रांति को भी अपने जद में ले लिया. कुछ साल पहले ही ऐसा दौर था जब मकर संक्रांति के महीनों पहले से गांव में चूड़ा कूटने और कोल्हू का काम शुरु हो जाता था. लोग अपने घर धान भिगाकर चूड़ा कुटवाते थे और गन्ना से गुड़ बनता था. लेकिन अब यह सब धीरे-धीरे बंद होता दिख रहा है.

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चूड़ा कूटने की मशीन

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Published : Jan 14, 2020, 10:19 AM IST

भदोही: लोग समय के साथ-साथ आधुनिकता के दौर में आते गए और अपनी पुरानी परंपराओं को भूलने लगे. उसी का ताजा उदाहरण मकर संक्रांति से पहले गांव में बैठाए जाने वाले चूड़ा मशीन और कोल्हू है. पहले के समय में मकर संक्रांति आते ही हर गांव में दो से तीन परिवार ऐसे होते थे, जिनका महीनों कोल्हू चलाने और चूड़ा कूटने में बीत जाता था.लोग चूड़ा कुटाने के लिए सुबह से ही लंबी-लंबी लाइने लगाया करते थे. लेकिन अब स्थिति यह है कि गांव से चूड़े की मशीन लगभग खत्म ही हो गई.

गांव में ऐसे चलती है चूड़ा कूटने की मशीन.

जिस तरीके से दीपावली पर लोग दीये की जगह चाइनीज लाइटों को महत्व देने लगे हैं, उसी प्रकार से मकर संक्रांति के दिन लोग अब गांव की परंपरागत चीजों को भूलकर बाजारी वस्तुओं पर ज्यादा भरोसा दिखा रहे हैं. पहले लोग अपने घर का चूड़ा खाते थे. आज लोग दुकानों से खरीदते हैं, जिसकी वजह से गांव में मिलने वाले मौसमी रोजगार बुरी तरीके से खत्म हो रहे हैं.

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गांव में घट रहे रोजगार
मकर संक्रांति से महीनों पहले गांव के चारों तरफ मशीनों की आवाजें गूंजती थी, लेकिन अब बड़ी मुश्किल से ही ऐसा किसी गांव में देखने को मिलता है. चूड़ा मशीन संचालक कल्लू बताते हैं कि पहले हम मशीन तीन महीने चलाते थे, अब 15 दिन चलाते हैं. पहले प्रतिदिन 14 से 15 घंटे काम करने पड़ते थे, जबकि अब ऐसा नहीं है वो परंपरा समाप्त हो चुकी है. अब लोग रेडीमेड सामानों के आदी हो गए हैं.

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