संत कबीर नगर: जिले में दो नन्हीं बच्चियों ने अखबार से लिफाफा बनाकर घर का खर्च चलाने का बीड़ा उठाया है. लॉकडाउन के चलते इनके भाई का कारोबार बंद हो गया, जिससे परिवार के सामने खाने-पीने के लाले पड़ गए. परिवार पर आए इस संकट के बाद दोनों बच्चियों ने लिफाफा बनाकर बेचना शुरू किया.
अखबार से लिफाफा बनाकर घर का खर्चा चला रही दो नन्हीं बच्चियां दोनों बच्चियां पुराने अखबार से लिफाफा बनाती हैं फिर उसे बाजार में ले जाकर बेचती हैं. इससे इन्हें जो भी कुछ थोड़े बहुत पैसे मिलते हैं, उसी से अपने परिवार का खर्च चलाती हैं. वहीं दोनों बच्चियों के पिता भी बीमार ही रहते हैं.
मामला संत कबीर नगर जिले के खलीलाबाद के पुरानी तहसील का है, जहां रहने वाले बेचन प्रसाद चार साल पहले लकवे की बीमारी से ग्रसित हो गए, जिसके बाद वह कार्य करने में असमर्थ हो गए. वहीं पत्नी की भी तबीयत काफी दिनों से खराब ही रहती है. तबीयत खराब होने की वजह से बेचन और उनकी पत्नी हमेशा बेड पर ही रहते हैं.
घर में उनका एक बेटा भी है, जो घर का खर्च चलाने के लिए ड्राइविंग कर परिवार का भरण-पोषण करता था. लेकिन लॉकडाउन की ऐसी मार पड़ी कि घर का खर्च चलाना तक मुश्किल हो गया. गाड़ियों के बंद होने के बाद बेटे का रोजगार छिन गया, जिसके बाद परिवार के सामने खाने तक के लाले पड़ गए.
बेचन की दो पुत्रियां सलोनी और शिवानी हैं, जब इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं मिला तो घर पर शिवांगी ने अखबार खरीद कर लिफाफा बनाने का काम शुरू किया. लिफाफे को शिवांगी और शिवानी बनाने के बाद दुकानों पर ले जाकर बेचती हैं, जिसके बाद से मिले पैसे से पूरे परिवार का खर्च चला रही हैं.
जब ईटीवी भारत की टीम शिवांगी के घर पहुंची तो हमने देखा कि दोनों बच्चियां पुराने अखबार, कैंची और गोंद के साथ लिफाफा बना रही थीं. वहीं पास में उनके बीमार पिता भी हमें बिस्तर पर पड़े दिखे, जब हमने बच्चियों से उनके काम के बारे पूछा तो उन्होंने हमें बताया कि वह पिछले चार सालों से लिफाफा बना रही हैं. बच्चियों ने हमें बताया कि उनके पिता बीमार रहते हैं. घर का खर्च चलाने के लिए वे लिफाफा बनाकर बाजार में बेचती हैं, जिससे घर का खर्च चल रहा है.
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शिवांगी के पिता से बातचीत में उन्होंने बताया कि चार साल पहले उन्हें लकवे की बीमारी हो गई थी, जिसके बाद से उनका शरीर काम करना बंद कर दिया. परिवार पर आए संकट को देखते हुए बच्चियों ने लिफाफा बनाकर घर का खर्च चलाने का काम शुरू कर दिया था.
जब शिवांगी के पिता से प्रशासनिक मदद के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि हां नगरपालिका और व्यापार मंडल के लोग आए थे, उन्होंने हमारी थोड़ी बहुत मदद की है.