संत कबीर नगर: प्रदेश का संत कबीर नगर जिला महापुरुषों की कर्मभूमि के साथ ही पुरातात्विक महत्व को खुद में संजोए हुए है. साथ ही यह जिला यहां पर निर्मित सूती कपड़े के लिए भी अपनी अलग ही पहचान रखता है. दो दशक पूर्व बुनकरों के हाथों से बने कपड़ों की धूम पूरे पूर्वांचल के साथ ही समूचे देश में लंबे समय तक रही. लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा और बढ़ती हुई महंगाई की मार से अब बुनकरों का कारोबार लगभग बंदी की कगार पर है.
मंहगाई की मार से हथकरघा उद्योग बेहाल.
जीएसटी ने तोड़ी कारोबार की कमर
कभी पावरलूम कारोबार से आबाद रहा जिला अब बुनकरों की आह से कराह रहा है. पीढ़ियों से हुनरमंद हाथों से लिबास बुनने वाली यह जमात अब संसाधनों की कमी और सियासतदानों की बेरूखी से तबाह होती दिख रही है. बढ़ती मंहगाई और जीएसटी के संकट ने इस फलते-फूलते कारोबार को ऐसी चोट पहुंचाई है कि नई नस्लें इस कारोबार से तौबा कर रही हैं.
हथकरघों की गूंजती आवाज अब कहां?
सरकारों की उदासीनता के चलते सूती वस्त्रों का उद्योग अपनी बदहाली के आंसू बहा रहा है. इन कारखानों में काम करने वाले सैकड़ों कामगार और बुनकरों की जिंदगी बेनूर सी हो गई है. जानकार बताते हैं कि दो दशक पूर्व जनपद के 250 गांवों में हथकरघों से निकलने वाली आवाज हमेशा कानों में गूंजा करती थी. यहां के बने कपड़े देश के कोने-कोने में अपनी एक अलग ही पहचान रखता था, लेकिन बदलते दौर में यह उद्योग बाजार में खुद को टिकाए रखने के लिए संघर्ष करता दिख रहा है.
महंगाई की मार से व्यापारियों का हुआ मोह भंग
खलीलाबाद में दूर-दूर से व्यापारी कपड़े के लिए ऑर्डर देने आते थे. लेकिन अब व्यापारी भी इस तरफ अपना रुख नहीं करते दिख रहे हैं. कपड़ा व्यवसाय के क्षेत्र में यह जिला काफी दिनों तक चर्चा में रहा, लेकिन बाद में प्रोत्साहन के अभाव के चलते यहां का हथकरघा उद्योग दम तोड़ने लगा. इससे हुनरमंद हाथ मौजूदा वक्त में रोजी-रोटी के लिए संघर्ष करते नजर आ रहे हैं. वहीं पूरे मामले पर डीएम रमेश गुप्ता ने बताया कि बुनकरों के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिससे वह लाभ लेकर अपने व्यापार को आगे बढ़ा सकते हैं.