संत कबीर नगर: जिले की ऐतिहासिक बखिरा झील सदियों से अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है, लेकिन इसकी बदहाली पर सरकार की नजर नहीं है. चुनाव के समय जिले के चुने गए जनप्रातिनिधियों ने हर बार बखिरा झील के अच्छे दिन लाने के तमाम वादे किए, लेकिन चुनाव के बाद ये वादे खोखले साबित हुए. आज भी बखिरा झील की बदहाली की स्थिति जस की तस बनी हुई है. देखें ईटीवी भारत की रिपोर्ट में बखिरा झील का हाल क्यों है बेहाल.
बखिरा झील संत कबीर नगर जिला मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर दूर खलीलाबाद-मेहदावल मार्ग पर है. इसे मोती झील के नाम से भी जाना जाता है. ये झील करीब 12 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है. ठंड के दिनों में प्रवासी पक्षियों की मौजूदगी से झील का क्षेत्रफल रमणीक हो जाता है. यहां विदेशी साइबेरियन पक्षियों में लालसर, पटियरा, कैमा, मऊरार, पोचर्ड, रेडक्रेस्टेड, सुरखाब, स्पाटेड, ईगल, मार्स और हैरियन सहित विभिन्न प्रजाति के पक्षियों का जमावड़ा रहता है.
इन पक्षियों की एक झलक पाने और यहां का खूबसूरत नजारा देखने के लिए पर्यटक बखिरा झील पर आते हैं. पर्यटकों को झील तक पहुंचने के लिए लोहे के चने चबाने पड़ते हैं, क्योंकि झील तक जाने के लिए टूटे-फूटे रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है. झील तक पहुंचने के बाद पर्यटक मायूस होकर वापस लौट जाते हैं, क्योंकि उन्हें झील तक पहुंचने के लिए कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं है और न ही यहां बैठने और देखने लायक कोई चीज है.