सहारनपुर:जिले में स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस उद्यान वानस्पतिक पौधों के संकलन, शोध कार्य एवं विकास का मुख्य केंद्र रहा है. यह शोध केंद्र अंतिम मुगल शासन काल 1750 ईशा में शाही आनंद ग्रह के रूप में स्थापित हुआ था. इस केंद्र को उद्यान के रूप में संचालन करने के लिए गुलाम कादिर ने सन् 1786 ईo में सात गांव की माल गुजारी दी गई.
सहारनपुर: नेताजी सुभाष चंद्र बोस उद्यान का कई वर्षों पुराना रहा है इतिहास
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में नेताजी सुभाष चंद्र बोस गार्डन एवं प्रशिक्षण केंद्र का कई वर्षों पुराना इतिहास रहा है. इस शोध केंद्र को मुगल शासन काल से शाही आनंद ग्रह के रूप में जाना जाता था. मुगलों ने इस प्रशिक्षण केंद्र को मराठा सरदार को उपहार के रूप में भेंट किया था.
यहां होती थी उपयोगी पौधों की खेती
इस उद्यान की देखभाल मराठा राजाओं के हाथ में आई और तत्पश्चात ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में चली गई. यहां मुख्यता शोध और उपयोगी पौधों की खेती की जाती रही है. सन् 1817 में यह उद्यान अंग्रेजी शासन के अधीन आ गया था. डॉ. गोवान को यहां का प्रथम निदेशक नियुक्त किया गया, इस उद्यान में संपूर्ण विश्व से विभिन्न प्रजाति के पौधों का संकलन कर स्थानीय जलवायु के अनुकूल बनाया गया. पपीता, जापानी पर्सीमोन, लोकाट, पियर इत्यादि यहां की प्रमुख प्रजातियां है.
पहले यह गार्डन नहीं था, यह शोध केंद्र के रूप में जाना जाता था. 1750 में मराठाओं के समय जो इतिहास मिलता है, उसके हिसाब से यह कभी मुगल ने किसी मराठा सरदार को भेंट किया था. बाद में जब अंग्रेज इस देश में आए और ईस्ट इंडिया कंपनी यहां पर आई, तो उन्होंने कब्जा कर लिया. उसके बाद अंग्रेज यहां पर इसके अधीक्षक के रूप में नियुक्त हुए, उन्होंने यहां पर विभिन्न कार्य किए.
राजेंद्र प्रसाद, ज्वाइंट डायरेक्टर