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जमीयत के सम्मेलन को संबोधित करते हुए महमूद मदनी के छलके आंसू, कही ये बात - Jamiat Ulema e Hind

सहारनपुर में जमीयत उलमा ए हिंद के सम्मेलन को संबोधित करते हुए महासचिव महमूद मदनी भावुक हो गए. उन्होंने कहा कि नफरत को नफरत से नहीं मिटाया जा सकता बल्कि इसे प्यार से ही खत्म किया जा सकता है.

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सम्मेलन में ऐसे भावुक हो गए महमूद मदनी.

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Published : May 28, 2022, 6:38 PM IST

सहारनपुर : काशी और मथुरा के धार्मिक स्थलों के दावों के बीच शनिवार को फतवों की नगरी देवबंद में जमीयत उलेमा-ए-हिंद का राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया. दो दिन चलने वाले इस सम्मेलन में कुल तीन प्रस्तावों पर चर्चा की जाएगी. सम्मेलन को संबोधित करते हुए जमीयत महासचिव महमूद मदनी भावुक हो गए. उन्होंने कहा कि देश के हालात खराब होते जा रहे हैं. नफरत को नफरत से नहीं मिटाया जा सकता. आग को आग से नहीं बुझाया जा सकता.

कहा कि देश के हालात मुश्किल जरूर हैं लेकिन मायूस होने की कोई आवश्यकता नहीं है. मुसलमान आज देश का सबसे कमज़ोर तबका है लेकिन इसका यह मतलब यह नहीं है कि हम हर बात को सिर झुकाकर मानते रहें. हम ईमान पर कोई समझौता नहीं करेंगे. देश में नफरत के खिलाड़ियों की कोई बड़ी तादाद नहीं हैं लेकिन सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि बहुसंख्यक खामोश हैं. उन्हें पता है की नफ़रत की दुकान सजाने वाले देश के दुश्मन हैं.

सम्मेलन को संबोधित करते हुए ऐसे भावुक हुए महमूद मदनी.
जमीयत के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने बड़ी कुर्बानियां दी हैं. हम साम्प्रदायिक शक्तियों को देश की अस्मिता से खिलवाड़ नहीं करने देंगे. इस दौरान महमूद मदनी ने कहा कि आग को आग से नहीं बुझाया जा सकता. नफरत का जवाब नफरत नहीं हो सकती. इसका जवाब प्रेम और सद्भाव से दिया जाना चाहिए.

मौलाना महमूद मदनी ने परोक्ष रूप से अंग्रेजों से माफी मांगने वालों को भी आड़े हाथों लिया. कहा कि घर को बचाने और संवारने के लिए कुर्बानी देने वाले और होते हैं और माफीनामा लिखने वाले और. दोनों में फर्क साफ होता है. दुनिया ये फर्क देख सकती है कि किस प्रकार माफीनामा लिखने वाले फांसीवादी सत्ता के अहंकार में डूबे हैं. वे देश को तबाही के रास्ते पर ले जा रहे हैं. जमीअत उलमा ए हिंद भारत के मुसलमानों की दृढ़ता का प्रतीक रही है।

इससे पहले जमीयत के पदाधिकारियों ने देश और समाज के मुददों पर प्रस्ताव पेश किए. देश में नफ़रत के बढ़ते दुष्प्रचार को रोकने के उपायों पर विचार के लिये व्यापक चर्चा की गई. प्रस्ताव के माध्यम से इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की गयी कि देश के मुस्लिम नागरिकों, मध्यकालीन भारत के मुस्लिम शासकों और इस्लामी सभ्यता व संस्कृति के खि़लाफ़ भद्दे और निराधार आरोपों को जोर से फैलाया जा रहा है.


मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद इस बात को लेकर ज्यादा चिंतित है कि खुले आम भरी सभाओं में मुसलमानों और इस्लाम के खि़लाफ़ शत्रुता वाले प्रचार से पूरी दुनिया में देश की बदनामी हो रही है. देश की छवि एक तास्सुबी, तंगनज़र, धार्मिक कट्टरपंथी राष्ट्र जैसी बन रही है.

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