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सहारनपुर में मदरसा अध्यापकों को चार साल से नहीं मिला वेतन

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में मदरसा अध्यापकों को आर्थिक तंगी से जूझना पड़ रहा है. वजह है कि, उन्हें बीते चार सालों से वेतन नहीं मिला है. हालांकि अध्यापकों को राज्यांश तो मिल रहा है, लेकिन वो काफी नहीं है. मदरसा अध्यापकों को केंद्रान्श की मांग है.

ट्यूशन पढ़ाने को मजबूर हैं मदरसा अध्यापक.
ट्यूशन पढ़ाने को मजबूर हैं मदरसा अध्यापक.

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Published : Sep 14, 2020, 10:59 AM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:22 PM IST

सहारनपुर:जिले के मदरसा अध्यापकों को पिछले चार साल से मानदेय नहीं मिला है. आर्थिक संकट से जूझ रहे मदरसा अध्यापक चाय-पकौड़ी की दुकान लगाकर आजीविका चलाने को मजबूर हैं. मदरसा अध्यापकों के मुताबिक उत्तर प्रदेश के 25,500 से ज्यादा अध्यापक केंद्र सरकार से वेतन की मांग कर रहे हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है.

मदरसा जामिया तुल फलाह ताराापुर, चिलकाना की अध्यापिका उज़मा ने बताया कि उन्हें पढ़ाते हुए 10 साल से ज्यादा समय बीत चुके हैं और इन सालों में उन्हें परेशानियां आईं. उन्होंने बताया कि नौकरी मिलने के बाद से 6 महीनों का वेतन उन्हें लगातार मिलता रहा, लेकिन पिछले चार साल से केंद्र सरकार की ओर से मिलने वाला 60 प्रतिशत मानदेय नहीं मिल रहा है. हालांकि राज्य सरकार का राज्यांश यानी स्नातक को 2000 और स्नाकोत्तर को 3000 रुपये मिल रहे हैं, लेकिन घर परिवार के खर्च के लिए ये काफी नहीं है.

मदरसा अध्यापकों से बातचीत.

बता दें कि केंद्र सरकार ने फरमान जारी किया था कि मानदेय का 40 प्रतिशत राज्य सरकार व 60 प्रतिशत केंद्र सरकार की ओर से दिया जाएगा. इस तरह अध्यापकों को राज्यांश तो मिल रहा है, जिससे उनके परिवार का भरण पोषण हो रहा है. उत्तर प्रदेश सरकार मदरसा अध्यापकों को स्नातक व स्नातकोत्तर के स्तर से 2-3 हजार रुपये राज्यांश के रूप में दे रही है, लेकिन अध्यापक केंद्रान्श की मांग कर रहे हैं.

मदरसा अध्यापक यूनियन पदाधिकारी अताउर्रहमान ने बताया कि वे इस योजना में 2009 से नौकरी कर रहे हैं. मदरसा अध्यापकों को सरकारी मानदेय देने की योजना 1994 से चल रही है. पहले इस योजना का नाम एसपीएमएस था. योजना के मुताबिक मदरसा अध्यापक को स्नातक स्तर पर 3000 रुपये और स्नाकोत्तर स्तर पर 4000 रुपये मानदेय दिया जाता था. इसके बाद 2008 में योजना में संशोधन कर एक मदरसे में दो की जगह तीन अध्यापक करके मानदेय में भी वृद्धि की गई.

इस बार मदरसा अध्यापकों के मानदेय को 6-12 हजार रुपये कर दिया गया. 2018 में एक बार फिर योजना में संशोधन किया गया, लेकिन सरकार ने न तो अध्यापकों का वेतन बढ़ाया है और न ही उन्हें कोई फायदा हुआ है. उन्होंने बताया कि 2012 से अब तक योजना का कोई पैसा लेफ्ट नहीं हुआ था, लेकिन साल 2014 में बीजेपी सरकार के आने के बाद तब से मदरसा अध्यापकों को केंद्र सरकार की ओर से प्रस्तावित 60 प्रतिशत मानदेय नहीं मिला है.

योजना के मुताबिक केन्द्रांश के रूप में स्नातक को 6 हजार रुपये और स्नातकोत्तर को 12 हजार रुपये मानदेय मिलता है. राज्यांश और केन्द्रांश मिलाकर कुल 8-15 हजार रुपये मानदेय तय किया गया था, लेकिन मानदेय ही नहीं दिया जा रहा है. इसके चलते BA, MA बीएड पास अध्यापक भी रिक्शा चलाने के साथ चाय, पकौड़ी और चिकन की दुकान चलाने को मजबूर हैं.

उत्तर प्रदेश के करीब 25,500 से ज्यादा मदरसा अध्यापकों के परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं. केंद्र सरकार पर 970 करोड़ रुपये मानदेय बकाया है. हालांकि सरकार की ओर से हर साल 120 करोड़ का बजट मदरसा अध्यापकों के लिए पास किया जाता है, जबकि इस बार 220 करोड़ का बजट पास किया गया. बावजूद इसके अध्यापकों को मानदेय नहीं मिल पा रहा है.

जिला अल्पसंख्यक अधिकारी भारत लाल गोंड ने बताया कि सरकार की ओर से मदरसा अध्यापकों के लिए मानदेय निश्चित किया गया है. इसमें स्नातक स्तर अध्यापकों के लिए 8 हजार व स्नाकोत्तर स्तर के अध्यापकों के लिए 12 हजार रुपये तय है. इसके लिए विभाग की ओर से कई बार शासन को अवगत कराया गया, लेकिन अभी तक कोई मानदेय नहीं मिल पा रहा है.

Last Updated : Sep 17, 2020, 4:22 PM IST

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