सहारनपुर:जिले के मदरसा अध्यापकों को पिछले चार साल से मानदेय नहीं मिला है. आर्थिक संकट से जूझ रहे मदरसा अध्यापक चाय-पकौड़ी की दुकान लगाकर आजीविका चलाने को मजबूर हैं. मदरसा अध्यापकों के मुताबिक उत्तर प्रदेश के 25,500 से ज्यादा अध्यापक केंद्र सरकार से वेतन की मांग कर रहे हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है.
मदरसा जामिया तुल फलाह ताराापुर, चिलकाना की अध्यापिका उज़मा ने बताया कि उन्हें पढ़ाते हुए 10 साल से ज्यादा समय बीत चुके हैं और इन सालों में उन्हें परेशानियां आईं. उन्होंने बताया कि नौकरी मिलने के बाद से 6 महीनों का वेतन उन्हें लगातार मिलता रहा, लेकिन पिछले चार साल से केंद्र सरकार की ओर से मिलने वाला 60 प्रतिशत मानदेय नहीं मिल रहा है. हालांकि राज्य सरकार का राज्यांश यानी स्नातक को 2000 और स्नाकोत्तर को 3000 रुपये मिल रहे हैं, लेकिन घर परिवार के खर्च के लिए ये काफी नहीं है.
बता दें कि केंद्र सरकार ने फरमान जारी किया था कि मानदेय का 40 प्रतिशत राज्य सरकार व 60 प्रतिशत केंद्र सरकार की ओर से दिया जाएगा. इस तरह अध्यापकों को राज्यांश तो मिल रहा है, जिससे उनके परिवार का भरण पोषण हो रहा है. उत्तर प्रदेश सरकार मदरसा अध्यापकों को स्नातक व स्नातकोत्तर के स्तर से 2-3 हजार रुपये राज्यांश के रूप में दे रही है, लेकिन अध्यापक केंद्रान्श की मांग कर रहे हैं.
मदरसा अध्यापक यूनियन पदाधिकारी अताउर्रहमान ने बताया कि वे इस योजना में 2009 से नौकरी कर रहे हैं. मदरसा अध्यापकों को सरकारी मानदेय देने की योजना 1994 से चल रही है. पहले इस योजना का नाम एसपीएमएस था. योजना के मुताबिक मदरसा अध्यापक को स्नातक स्तर पर 3000 रुपये और स्नाकोत्तर स्तर पर 4000 रुपये मानदेय दिया जाता था. इसके बाद 2008 में योजना में संशोधन कर एक मदरसे में दो की जगह तीन अध्यापक करके मानदेय में भी वृद्धि की गई.