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जानिए कैसे करें नवरात्र पूजा, किस मुहूर्त में करें कलश और मूर्ति स्थापना - शारदीय नवरात्रि 2020

शारदीय नवरात्र की शुरुआत आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में होती है और नवमी तिथि पर समाप्त होती है. इस बार नवरात्र 17 अक्तूबर से शुरू हो रहे हैं. हिन्दू धर्म के इस पावन त्योहार पर मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा होती है. जानिए कैसे करें शनिवार से शुरू हो रहे नवरात्र की पूजा और किस मुहूर्त में करें कलश और मूर्ति स्थापना.

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शारदीय नवरात्रि 2020

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Published : Oct 16, 2020, 9:01 PM IST

सहारनपुर:17 अक्टूबर यानि शनिवार से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है. शुक्रवार के दिन अमावस्या को शाम को मिट्टी की सांझी लगाई जाएगी. अगले दिन सुबह मां के भगत कलश स्थापना के साथ खेचरी यानी जौं के बीज बोकर मां की पूजा की जाएगी. कलश स्थापना के लिए विशेष मुहूर्त का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. घटक एवं कलश स्थापन के लिए दो शुभ मुहूर्त निकल रहे हैं, जो सुबह 6:23 बजे से 10:11 बजे और 11:42 बजे से 12:28 बजे तक रहेगा. बताया जाता है कि रावण वध करने से पहले भगवान श्रीराम ने मिट्टी की मूर्ति बनाकर 9 देवियों की पूजा की थी. तभी से नवरात्र का त्योहार मनाया जा रहा है.

जानकारी देते ज्योतिषाचार्य पंडित योगेश दीक्षित.



रावण वध से पहले भगवान राम ने की नवरात्र पूजा
पंडित योगेश दीक्षित ने बताया कि नवरात्र का त्योहार आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में आरंभ होता है. इस नवरात्र का बहुत महत्व है. माना जाता है कि भगवान राम ने जब रावण पर विजय पाई थी, उससे पहले भगवान राम ने वनवास में रहते हुए मिट्टी की प्रतिमा बनाकर नौ दिन तक मां दुर्गा की पूजा की थी. तभी से यह त्योहार मनाया जा रहा है.


अमावस्या के दिन स्थापित की जाती है मिट्टी की सांझी
अमावस्या के दिन मां दुर्गा की मिट्टी की मूर्ति बनाकर के स्थापित की जाती है, लेकिन इसका मुहूर्त अगले दिन सुबह प्रतिपदा से विशेष मुहूर्त में विधि-विधान से कलश स्थापित किया जाता है. इसके अलावा खेचरी यानी जौं के बीज बोए जाते हैं. 9 दिन तक यह पूजा चलती है और 10वें दिन अपराजिता देवी की पूजा करने के बाद मां भगवती की मूर्ति को बहते जल में विसर्जित किया जाता है.

17 अक्टूबर को मूर्ति एवं कलश स्थापन का शुभ मुहूर्त
नवरात्र में विधि-विधान से मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित की जाती है. इसके बाद अमावस्या के अगले दिन पहले नवरात्र को शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित और खेचरी बोई जाती है, जिसे आम भाषा में नोरतै भी बोलते हैं. शनिवार 17 तारीख को पूजा-अर्चना का शुभ मुहूर्त सुबह 6:23 बजे से लेकर 10:11 बजे तक रहेगा. जिन भक्तों को कलश स्थापन एवं खेचरी बोनी है, इस मुहूर्त में करें. अगर किन्ही कारणों से किसी से यह मुहूर्त छूट जाता है तो वे अभिजीत मुहूर्त में भी घटक स्थापित कर सकते हैं, जो दोपहर 11:42 बजे से आरंभ होगा और 12:28 बजे तक रहेगा.

मिट्टी की सांझी को बहते पानी में कैसे करें विसर्जित
मिट्टी की सांझी बनाकर 9 दिनों तक मां शारदे की पूजा की जाती है. मिट्टी की बनी सांझी को विसर्जन करने का भी विधान है. मिट्टी से मां दुर्गा की सुंदर मूर्ति बनाकर पूजा-अर्चना की जाती है. जो मूर्तियां मिट्टी से बनाई जाती हैं, उनका विसर्जन अनिवार्य है. जैसे भगवान शंकर के पार्थिव बनाते हैं, ऐसे ही मां दुर्गा का भी पार्थिव बना करके उनका विसर्जन किया जाता है. इसमें मां शैलपुत्री से लेकर नव दुर्गा की पूजा की जाती है.

नोरतै एवं खेचरी का महत्व
नवरात्र के दिनों में मां के दरबार में नोरतै की बुवाई की जाती है. अन्य भाषा में इसे खेचरी भी कहा जाता है. जौं सबसे ताकतवर अन्न माना जाता है. जौं का हरा रंग होता है, जो सुख समृद्धि का कारक माना जाता है. इसी प्रकार से इसमें जल की आवश्यकता रहती है. भक्त मां भगवती से प्रार्थना करते हैं कि हे मां जिस प्रकार से खेचरी हरी भरी है, इसी प्रकार से उनके घर में भी सुख-समृद्धि बनी रहे.

पंडित योगेश दीक्षित ने बताया कि आज अमावस्या की शाम को सांझी लगा देते हैं, लेकिन स्थापना एवं मां दुर्गा का आगमन अगले दिन प्रथम नवरात्र की सुबह किया जाएगा. इसका एक विशेष मुहूर्त दिया गया है. घट स्थापन में जो विशेष मुहूर्त है, उसमें एक कलश स्थापित किया जाता है. कलश के अंदर रोली, चावल, फूल, सुपारी, पंचरत्न, दुबड़ा, हरिद्रा जो भी सुख-समृद्धि के कारक तत्व माने जाते हैं. वे सब चीजें कलश में डालकर ऊपर एक पात्र के अंदर चावल भर के उसके ऊपर नारियल रख दें. इसके बाद मां भगवती का आह्वान किया जाता है. फिर 9 दिन तक पूजा-पाठ कर प्रार्थना की जाती है. मां भगवती से प्रार्थना की जाती है कि इस कलश में वे 9 दिन तक विराजमान रहे और पूरे वर्ष के लिए आशीर्वाद प्रदान करें.

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