सहारनपुर: सावन मास में भोले बाबा को प्रसन्न करने के लिए कांवड़ यात्रा शुरू हो चुकी है. कांवड़ यात्रा को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं हैं. इन्हीं में एक मान्यता है कि गूलर के पेड़ के नीचे से कांवड़ लेकर निकलने पर यह खंडित हो जाती है. इसका जल भोले बाबा में चढ़ाने के लायक नहीं बचता है.
ETV भारत को पंडित रोहित वशिष्ठ ने बताया कि गूलर के वृक्ष को संस्कृत में उध्म्बर कहते हैं यानि जो भगवान शिव का स्मरण करता है उसी को उध्म्बर कहते हैं. हिंदू धर्म शास्त्रों में गूलर का वृक्ष एक पूजनीय वृक्ष है. इसका संबंध शुक्र ग्रह से है और शुक्र ग्रह यानि शुक्र देवता को महामृत्युंजय मंत्र के उपासक के रूप में माना जाता है. गूलर के पेड़ का सबन्ध यक्षराज कुबेर से भी है औऱ कुबेर भगवान शिवजी के मित्र हैं. यही वजह है कि गूलर के वृक्ष का सीधा संबंध भगवान शिव से है. भगवान शिवजी की पूजा में जितना महत्व बेलपत्र के पेड़ का रहता है उतना ही महत्व गूलर के पेड़ का रहता है.
पंडित वशिष्ठ बताते हैं कि गूलर के फल में असंख्य जीव होते हैं. ये फल अक्सर पेड़ से टूटकर जमीन पर गिर जाते हैं. ऐसे में यदि पेड़ के नीचे से गुजरते हुए कावड़िए का पैर इस फल पर पड़ेगा तो उन जीवों की मृत्यु हो सकती है. ऐसे में कावंड़िए पर हत्या का पाप लगेगा और उसका पवित्र जल खंडित हो जाएगा. उन्होंने बताया कि कांवड़िए बेहद पवित्र भावना के साथ जल लेकर रवाना होते हैं. ऐसे में गूलर के पेड़ के नीचे से गुजरने से उन्हें बचना चाहिए. इसके लिए उन्हें सतकर्ता बरतनी चाहिए.