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जानिए, आधी रात को ही क्यों तोड़ते हैं जन्माष्टमी का व्रत

यूपी के सहारनपुर में श्री कृष्ण जन्मोत्सव का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है और इस मौके पर मंदिरों को सजाया गया है. वहीं मंदिरों में बच्चों को श्री कृष्ण और राधा रानी के स्वरूप में सजाया गया है.

पुजारी से की बातचीत.

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Published : Aug 24, 2019, 12:05 AM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:21 PM IST

सहारनपुर: भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव देश भर में धूमधाम से मनाया जा रहा है. सभी मंदिरों और शिवलायों को इस मौके पर सजाया गया है. जहां मथुरा-वृंदावन में भगवान श्री कृष्ण की धूम रहती है. वहीं सहारनपुर में भी जन्माष्टमी का त्यौहार हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है. इस अवसर पर हिन्दू धर्म के लोग न सिर्फ व्रत रखते हैं बल्कि घरों में मिठाइयां, फलाहार किया जाता है. खास बात ये है कि जन्माष्टमी का यह व्रत आधी रात को चन्द्रमा निकलने के बाद तोड़ा जाता है. इससे पहले मंदिरों में भगवान कृष्ण को पंचामृत से अभिषेक किया जाता है और मिश्री माखन के साथ धनिये का भोग लगाकर प्रसाद भी वितरित किया जाता है. इसी को लेकर ईटीवी भारत संवाददाता ने पंडित तिलक पाराशर से बातचीत की.

ईटीवी भारत ने पुजारी से की बातचीत.

जिले में धूमधाम से मनाई गई श्री कृष्ण जन्माष्टमी
शुक्रवार को जन्माष्टमी पर्व की धूम देखी गई. जहां माताओं ने अपने नन्हे- मुन्ने बच्चों को कान्हा के वस्त्र पहने कर कृष्ण बनाया. वहीं परिजनों नेकुछ बच्चियों को राधा की वेशभूषा पहनाकर राधा बनाया. जिले के सभी मंदिरों को सजाया गया है और सभी मंदिरों में लड्डू गोपाल जी को झूला झुलाया जा रहा है.

महिलाओं के साथ पुरूषों ने भी रखा व्रत
महिलाओं,युवतियों ने ही नहीं पुरुषों ने भी भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव के अवसर पर व्रत रखा हुआ है. हिंदु मान्यताओं के अनुसार यह व्रत आधी रात को चन्द्रमा निकलने के बाद खोला जाता है.

पंडित तिलक पाराशर ने ईटीवी से बातचीत में बताया कि
भगवान श्री कृष्ण जी का जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था और यह त्यौहार रात्रि को इसलिए मनाया जाता है क्योंकिं यह व्रत चंद्रोदय से संबधित है और रात्रि चंद्रोदय के समय ही भगवान का प्राकट्य हुआ है. भगवान कृष्ण बचपन से ही नटखट, चंचल और छलिया के नाम से जाने जाते थे और कृष्ण जी का जन्म राक्षसों, पापियों के उद्धार के लिए हुआ था. बचपन से ही कृष्ण भगवान ने अपनी लीलाओं से असुरों का संहार प्रारंभ कर दिया था, उन्होंने शिशु अवस्था में पूतना का वध किया, महिसासुर को मारा, नागों के राजा कालिया को पराजित किया.

देवताओं ने ब्रह्मा जी से श्री कृष्ण के पृथ्वी पर अवतार लेने के लिए की प्रार्थना
भगवान ब्रह्मा जी से सभी देवताओं ने आराधना की थी. इस पृथ्वी पर भाववान विष्णु जी अवतार ले और मथुरा के गोकुल में ग्वालों के रूप में भगवान विष्णु को आदेशित करें. ब्रह्मा जी की आज्ञा से भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के अवतार के रूप में राजा वासुदेव देवकी के यहां जन्म लिया. उस दौरान देवकी वासुदेव राजा कंस की जेल में बंद थे. जहां से रात में वासुदेव ने नदी के रास्ते वृंदावन पहुंचाया था.

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माता यशोदा और नंद बाबा ने किया श्री कृष्ण का पालन पोषण
पंडित तिलक पाराशर ने बताया किमाता यशोदा और नंद बाबा ने श्री कृष्ण का पालन-पोषण किया.पिछले जन्मों के वरदान के मुताबिक भगवान कृष्ण और राधा रानी का मिलन हुआ तभी से भगवान कृष्ण के नाम के साथ राधा रानी का नाम जुड़ गया. जो कालांतर तक रहेगा.

भगवान श्री कृष्ण बचपन से ही थे माखन चोर
भगवान कृष्ण जहां बचपन से ही माखन के शौकीन थे, वहीं उन्होंने बचपन से ही अपनी लीलाओं से असुरों का उद्धार करना शुरू कर दिया था. भाद्रपद की अष्टमी की रात में जैसे ही चन्द्र उदय होता है भगवान का श्रीमद्भागवत महापुराण प्राकट्य दिवस का वर्णन किया जाता है. इसके बाद भगवान कृष्ण का पंचामृत से जलाभिषेक किया जाता है. महाआरती के बाद भगवान को माक्खन मिस्त्री के साथ धनिये का भोग लगाकर प्रसाद वितरित किया जाता है. अगर हम सहारनपुर की बात करें तो यहां जन्माष्टमी का त्यौहार दो दिनों तक मनाया जाएगा.

Last Updated : Sep 17, 2020, 4:21 PM IST

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