सहारनपुर: रंगों के त्योहार होली को मनाने की तैयारियां जोरों पर चल रही हैं. जगह-जगह होलिका बनाकर उसका पूजन किया जा रहा है. वहीं सहारनपुर के बरसी गांव में होली पर्व को लेकर अनोखी परम्परा चली आ रही है. बरसी गांव में होलिका दहन नहीं किया जाता है. हालांकि ग्रामीण और गांव के युवा रंग और गुलाल लगाकर होली जरूर खेलते हैं. मान्यता है कि इस गांव में महाभारत कालीन स्वंयम्भू शिवलिंग स्थापित हैं और होलिका दहन की अग्नि से भोलेनाथ के पांव झुलस जाते हैं. ग्रामीणों का कहना है महाभारत काल से इस गांव में होलिका दहन नहीं किया जाता है, जबकि रीति रिवाज के मुताबिक गांव की शादीशुदा लडकियां पड़ोस के गांव में होली पूजन करके अपना त्योहार मनाती हैं.
बरसी गांव में होलिका दहन नहीं होता. होलिका दहन से होता है बुराई का अंत
होली को मनाने की तैयारियां देश भर में जोरों पर चल रही हैं. लोग रंगों की खरीददारी कर रहे हैं और मिठाइयां व पकवान बनाए जा रहे हैं. मान्यता है कि होलिका पूजन करने से घर में सुख शांति एवं समृध्दि आती है. होलिका दहन करके बुराई का अंत किया जाता है, लेकिन होली दिवाली समेत सभी त्योहारों को मनाने की शहरों एवं गांवों में अलग-अलग परंपराएं होती हैं. ऐसी ही अनोखी परंपरा सहारनपुर के बरसी गांव में देखने को मिलती है, जहां रंगो के त्योहार होली को रंग गुलाल के साथ तो धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन होलिका पूजन और दहन नहीं किया जाता है.
महाभारत काल से चली आ रही है अनोखी परंपरा
ईटीवी भारत की टीम ने बरसी गांव में पहुंचकर इस अनोखी परम्परा की पड़ताल की तो इसके पीछे महाभारत काल से चली आ रही वजह सामने आई. ग्रामीणों ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि गांव बरसी में महाभारत कालीन सिद्धपीठ शिव मंदिर है, जहां स्वंम्भू शिवलिंग स्थापित है. बताया जाता है कि इस मंदिर को कौरवों ने बनवाया था, लेकिन कुरुक्षेत्र के युद्ध में जाते समय पांडव पुत्र भीम ने इसके मुख्य द्वार में गदा फंसाकर पूर्व से पश्चिम में घुमा दिया था, जिसके चलते यह देश का एक मात्र पश्चिममुखी शिव मंदिर माना जाता है. बताया ये भी जाता है कि कुरुक्षेत्र जाते समय भगवान कृष्ण भी इस गांव में रुके थे, तो उन्होंने इस गांव को बृज जैसा बताया था, तभी से इस गांव का नाम बरसी पड़ गया.
होलिका से झुलसते हैं भगवान शिव के पैर
ग्रामीणों के मुताबिक बरसी गांव में न तो लकड़ी की होली बनाई जाती है और न ही होली का पूजन किया जाता है. ग्रामीणों का कहना है कि स्वंयम्भू शिवलिंग होने के कारण भगवान शिव बरसी गांव में आते हैं. होलिका की अग्नि से भोले बाबा के पैर झुलस जाते हैं इसलिए बरसी गांव में न तो होली का पूजन किया जाता है और न ही होली जलाई जाती है. महाभारत काल से आज तक इस गांव में होली नहीं गई है. ग्रामीण आगे भी इस परंपरा को कायम रखने की बात करते हैं, जबकि गांव की शादीशुदा लड़कियां अपनी ससुराल के रीति रिवाज के मुताबिक पड़ोसी गांवो में जाकर होली पूजन कर अपना त्योहार मनाती हैं.