सहारनपुर: आज से शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ हो चुका है. मां के भक्तों में पहले नवरात्रि को खासा उत्साह देखा जा रहा है. उत्तर भारत में वैष्णो देवी दरबार के बाद जिले के सिद्धपीठ मां शाकम्भरी देवी मंदिर का दूसरा स्थान माना जाता है. जहां जिला प्रशासन ने कोरोना वायरस के चलते यहां लगने वाले विशाल मेले को स्थगित कर दिया है. वहीं श्रदालुओं की आस्था कोरोना वायरस पर भारी पड़ती नजर आ रही है. वहीं कोरोना काल में भी देवी मां के भक्त पूजा करने के लिए मां के दरबार पहुंच रहे हैं. हालांकि इस बार नवरात्रि में श्रदालुओं की संख्या पिछले साल की अपेक्षा बहुत कम है. शिवालिक की पहाड़ियों के बीच जहां हजारों श्रदालुओं की भीड़ रहती थी. आज वहां 15 से 20 फीसदी ही भक्त मां के दर्शन को पहुंच रहे हैं. हालांकि मेला प्रशासन ने कोरोना प्रोटोकॉल का तहत सैनिटाइजर और मास्क लगाने की अपील कर रहा है.
शाकंभरी देवी सिद्धपीठ मंदिर पर नवरात्रि के पहले दिन श्रद्धालुओं का सैलाब. जानिए कहां है सिद्धपीठ शाकम्भरी देवी मंदिर
सिद्धपीठ शाकम्भरी देवी मंदिर जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर दूर तहसील बेहट इलाके में शिवालिक की छोटी पहाड़ियों के बीच बरसाती नदी किनारे स्थित है. जहां बरसात के दिनों में कई बार बाढ़ आ जाती है, लेकिन श्रदालुओं की आस्था को नहीं डगमगा पाई. नवरात्रि आते ही मां के दर्शन के लिए श्रदालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है. मान्यता है कि भारत के आठ सिद्दपीठ मंदिरों में शाकम्भरी देवी मंदिर का दूसरा स्थान है. कोरोना काल मे शारदीय नवरात्रि आते ही शिवालिक पहाड़ियों के बीच बने जगत जननी सिद्धपीठ मां शाकम्भरी देवी मंदिर में श्रदालुओं की भीड़ उमड़नी शुरू हो गई. नवरात्रि में मां के दर्शन करने के लिए हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश समेत कई राज्यों से बड़ी संख्या में श्रदालु पहुंचते हैं.
नवरात्रि में खुले सिद्धपीठ शाकम्भरी देवी के कपाट
कोरोना की वजह से 22 मार्च को जनता कर्फ्यू और 25 मार्च को लॉकडाउन लागू किए जाने के बाद सभी धार्मिक स्थलों के साथ सिद्धपीठ मां शाकम्भरी देवी मंदिर के भी कपाट बंद कर दिए गए थे. अप्रैल माह में चैत्र मास के नवरात्रों में मंदिर पूरी तरह से बंद रखा गया. ताकि नवरात्रों में मां के दर्शन को आने वाले श्रदालुओं को कोरोना वायरस से बचाया जा सके. हालांकि करीब 4 महीने बाद सिद्धपीठ शाकम्भरी देवी मंदिर को सशर्त खोलने के निर्देश दिए गए. लेकिन इस दौरान गर्भ गृह में पुजारी समेत केवल पांच लोगों को प्रवेश करने की ही अनुमति थी. आश्विन माह के शारदीय नवरात्रि में सिद्धपीठ के कपाट सभी श्रदालुओं के लिए खोल दिए गए हैं. कोरोना काल में शारदीय नवरात्रि में कई राज्यों से मां के दर्शन करने पहुंच रहे हैं. जबकि कोरोना की वजह से पिछले सालों की अपेक्षा बहुत कम श्रदालु मां के दर्शन कर रहे हैं.
मंदिर पर नवरात्रि के पहले दिन श्रद्धालुओं का सैलाब. सिद्धपीठ में लगने वाला राजकीय मेला हुआ स्थगित
कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के चलते जहां स्वास्थ्य विभाग ने विशेष एडवाइजरी जारी की हुई है. वहीं जिला प्रशासन ने सिध्दपीठ मां शाकम्भरी देवी मंदिर पर लगने वाले विशाल मेले को स्थगित कर दिया है. मेला स्थगित होने से नवरात्रों के दिनों में जहां कभी लाखों श्रदालुओं की भीड़ उमड़ी रहती थी. आज वहां 15 से 20 फीसदी ही श्रदालु पहुंच रहे हैं. मेले में लगने वाली दुकानों और हिंडोले लगाने की कोई अनुमति नहीं दी गई है. हालांकि श्रदालुओं के वाहनों के लिए पार्किंग का ठेका जरूर दिया गया है.
कोरोना प्रोटोकॉल के तहत हो रहे दर्शन
आश्विन माह के शारदीय नवरात्रि में सिध्दपीठ पहुंच रहे श्रदालुओं को कोरोना प्रोटोकॉल के तहत दर्शन कराए जा रहे हैं. गर्भ गृह के मुख्य द्वार पर थर्मल टेस्टिंग के साथ सैनिटाइजर से हाथ साफ कराए जा रहे हैं. सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस बल तैनात किया गया है. मां के जयकारों के साथ श्रदालु माता रानी के दर्शन कर रहे हैं. खास बात ये है कि नवरात्रि पूजा के लिए पहुंच रहे श्रदालु सोशल डिस्टेंसिंग की खुलेआम धज्जिया उड़ा रहे हैं. हालांकि एक साथ गर्भ गृह में पिंडी के दर्शन के लिए 30 लोगों को ही प्रवेश कराया जा रहा है.
सिद्धपीठ मां शाकम्भरी देवी की मान्यता
शंकराचार्य आश्रम के महंत सच्चिदानंद जी महाराज ने बताया कि मां के भक्तों की आस्था के आगे कोरोना वायरस का कोई असर नहीं है. मां शाकम्भरी देवी के मंदिर में आने वाले श्रदालु बिना मास्क के ही दर्शन कर रहे हैं. मां के दरबार कोरोना जैसी बीमारी का भी खात्मा हो जाता है. उन्होंने बताया कि माता पार्वती, दुर्गा भगवती, राजेश्वरी, मातेश्वरी, सुंदरी ने भगवती शाकम्भरीदेवी का रूप धारण करके कलयुग में प्रकट हुई थी. हजारों साल पहले धरती पर राक्षसों ने ब्रह्मा जी की आराधना करके चारों वेद मांग लिए थे. जिससे ऋषि मुनियों आदि के धार्मिक क्रियाएं यज्ञ आदि बंद हो गए थे. इतना ही नहीं धरती अकाल भी पड़ गया था. पानी की किल्लत से पशु पक्षी और जनमानस भूख प्यास से मरने लगे थे. जिसके बाद ऋषि-मुनियों ने मां दुर्गा की सैकड़ों साल तक तपस्या करनी पड़ी. ऋषि मुनियों की तपस्या से खुश होकर मां दुर्गा अपने नेत्रों से वर्षा कर धरती को हरा-भरा कर दिया. वर्षा होने से यहां साग-भाजी की फसल पैदा हुई. शाक-भाजी की पैदावार होने से इस स्थान का नाम शाकम्भरी पड़ गया था. इसी स्थान पर जगत जननी मां पार्वती का अंग पिंडी रूप में इस स्थान पर आकर गिरा था. जिससे माता रानी के इस मंदिर को सिद्धपीठ मां शाकम्भरी देवी के नाम से जाना जाने लगा. प्राचीन काल से ही मां के दर्शन करने बड़ी संख्या में श्रदालु आते हैं.