सहारनपुर: उत्तर प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने बच्चों की ऑनलाइन शिक्षा पर एतराज जताया है. आयोग के अध्यक्ष डॉ. विशेष गुप्ता ने कहा कि, ऑनलाइन शिक्षा से बच्चे के ऊपर मानसिक तनाव बढ़ रहा है. वहीं, परीक्षा में फेल होने पर तनाव के कारण छात्र-छात्राएं द्वारा आत्महत्या किए जाने की बढ़ रही घटनाओं पर उन्होंने कहा कि, केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति 2020 से छात्र-छात्राओं पर पढ़ाई का दबाव कम होगा. ईटीवी भारत से खास बातचीत में आयोग अध्यक्ष डॉ. विशेष गुप्ता ने कहा कि नई शिक्षा नीति के तहत स्कूली बच्चों के ऊपर बढ़ रहे किताबों के वजन को खत्म करने की स्कीम पर काम किया जा रहा है. इस नीति के तहत पहले दो साल में बच्चे को बिना किताब के ही स्कूल आना होगा, जहां उन्हें खेल कूद के माध्यम से पढ़ाया जाएगा.
उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष डॉ. विशेष गुप्ता से ETV BHARAT की खास बातचीत. खास बातचीत में क्या बोले बाल संरक्षण आयोग अध्यक्ष डॉ. विशेष गुप्ता
उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षक आयोग के अध्यक्ष डॉ. विशेष गुप्ता ने कहा कि, उत्तर प्रदेश सरकार की जो योजनाएं हैं, आयोग उनके नियंत्रण एवं निर्देशन में कार्य कर कर रहा है. हम सरकार की योजना को जमीनी स्तर पर उतारने के लिए प्रशासन को सहयोग दें और जिससे समाज के आखिरी छोर तक सरकार की योजनाए निश्चित तौर पर पहुंच सकें.
उन्होंने कहा कि, सीएम योगी का स्पष्ट मत है कि बच्चों, छात्राओं, महिलाओं और लड़कियों के साथ में किसी प्रकार की घटना होती है, तो बिना समय गवाएं उसका संज्ञान लेकर तुरंत कार्रवाई की जाए. उत्तर प्रदेश बाल श्रम आयोग के अंतर्गत 0 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार अधिनियम, पॉक्सो अधिनियम, बाल पुष्टाहार और जेजे एक्ट पर काम कर रहे हैं. आयोग की कोशिश है कि हर मंडल मुख्यालय पर जाकर कोविड-19 काल में भी समीक्षा बैठक की जाए. सूबे के बच्चे चाहे प्रवासी भाइयों से जुड़े हो, चाहे वह समाज के आखिरी छोर पर रहने वाले कमजोर, गरीब, भिक्षा मांगने वालों के हो, उनके लिए भी अभी हाल ही में दो योजनाए बनाई गई है.
'शुरुआती दो साल बच्चों को बिना किताबों के पढ़ाया जाएगा'
केंद्र सरकार नई शिक्षा नीति 2020 लाई है. आने वाले समय में जो लागू होने वाली है. उस योजना के अंतर्गत बच्चे शिक्षा के तनाव, किताबों के तनाव, पाठ्यक्रम तथा परीक्षाओं के तनाव से मुक्त रहेंगे. पहले 2 साल में बच्चे को बिना किताब के केवल लर्निंग से पढ़ाया जाएगा. बच्चे को आसपास के तमाम प्रकार के काम और माहौल सिखाये जाएंगे.
'ऑनलाइन शिक्षा से छात्रों को हो रही दिक्कत'
जैसे हम देख रहे हैं कि बच्चो को ऑनलाइन शिक्षा दी जा रही है. ऑनलाइन शिक्षा में भी हमारे पास शिकायत हुई हैं कि बच्चों की आंखों में दर्द होने लगा है. आंखों पर चश्मा चढ़ गया है, बच्चे बीमार रहने लगे हैं. इसमें अभिभावकों की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है कि ऐसे बच्चों को तनाव से मुक्त करने के लिए उनसे बात करें. अपने बच्चों को जानने की कोशिश करें. ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से भी हमें अपने बच्चों को अपने छात्रों को समझने की आवश्यकता है. वहीं जो कोर्स बना रहे हैं. उसमें मनोरंजन का कोई इंतजाम किया जाए, ताकि पढ़ाई लिखाई के साथ थोड़ा बहुत मनोरंजन भी हो जाए.
'गरीब घरों के बच्चों को आंगनवाड़ी केंद्र पर जाएगा पढ़ाया'
उन्होंने बताया कि सड़क पर घूमने वाले बच्चों के भी अधिकार है, उनको भी पोषण, सम्मान और शिक्षा का अधिकार है. सरकार चाहती है कि उनको ये अधिकार मिले. जिसमें समाज के आखिरी छोर पर रहने वाले कमजोर गरीब घरों के बच्चे, जो बेचारे कभी-कभी भूखे रह जाते हैं. उन बच्चों को आंगनवाड़ी केंद्र पर बुलाया जाएगा और उन बच्चों को को पढ़ाने के लिए आंगनवाड़ी कार्यकत्री को जिम्मेदारी दी जाएगी. जो हमारे छोटे बच्चों को पढ़ाती हैं वहीं उन बच्चों को पढ़ाएगी. जहां उनको बाल पुष्टाहार भी दिया जाएगा और उनको शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत पढ़ाया भी जाएगा.
'प्रदेश के बच्चे श्रमिक न बनकर शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर काम करें'
12 जून को बाल श्रम निरोधक दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस योजना के तहत मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कहा था कि जो बाल श्रमिक विद्या योजना है. उसके अंतर्गत ऐसे मां-बाप जो हमारे दिव्यांग एवं विकलांग हैं. जिनके बच्चे श्रम करने के लिए मजबूर हैं. ऐसे मां-बाप जिनके पास कोई जमीन नहीं है, जिनके पास आर्थिक संसाधन बहुत कमजोर है. उनके लिए सरकार इस योजना के अंतर्गत लड़कों को 1000 रुपये और लड़कियों के लिए 1200 रुपये और जो लड़के कक्षा 10वीं 12वीं में आए हैं. उनके लिए 25 हजार रुपये की राशि देना प्रस्तावित हुआ हैं. सरकार चाहती है कि प्रदेश के बच्चे श्रमिक न बनकर शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर काम एवं नाम करें.