रामपुर: गेहूं, धान, दलहन और गन्ना जैसी पारंपरिक फसलों को छोड़कर किसान आधुनिक खेती की ओर रुख कर रहा है, लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं हो सका. शायद यही वजह है कि एमएसपी को लेकर किसान इस कड़कड़ाती ठंड में सड़कों पर जमे हुए हैं. रामपुर के किसान पारंपरिक खेती छोड़कर अपने खेतों में आलूबुखारा और सेब की खेती कर अपनी आर्थिक स्थिति सुधारना चाहते हैं.
पारंपरिक खेती छोड़ किसानों ने लगाई सेब की बगिया, MSP को लेकर चिंतित - कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग
रामपुर जिले में किसान अपनी आय बढ़ाने के उद्देश्य से पारंपरिक खेती छोड़कर नई फसलें उगा रहे हैं. यहां किसान अपने खेतों में आलूबुखारा और सेब की खेती कर अपनी आर्थिक स्थिति सुधारना चाहते हैं.
एमएसपी किसानों के गले की फांस
किसान हनीफ वारसी ने बताया कि किसान ज्यादा लागत और कम बचत से बहुत परेशान हैं. किसान को समय से गन्ने का भुगतान नहीं मिलता है. सुगर मिलें सालों बाद फसल का भुगतान करती हैं, जबकि छोटे लघु किसान जरूरत के अनुसार अपनी फसलों को बेचता है. सरकार एमएसपी की बात कर रही है. एमएसपी के लिहाज से किसान को 1800 रुपये का भुगतान होना चाहिए, लेकिन एमएसपी की प्रक्रिया जटिल होने के कारण किसान अपना धान 1100 रुपये में बेचने को मजबूर है. इसलिए किसान सेब की बगिया और आलूबुखारे की बगिया लगाकर अपनी आमदनी बढ़ाने के प्रयास कर रहा है.
कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग से कंपनियों को पहुंचाया जाएगा फायदा
किसान संतोष सिकंदर ने बताया कि एमएसपी और कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग का नियम किसानों को समझ में नहीं आ रहा है. सरकार कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग का नियम लाकर किसानों को नुकसान और कंपनियों को फायदा देने की कोशिश कर रही है. किसान ने बताया कि आलूबुखारा और लहसुन की खेती में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है, लेकिन मजबूरी में करना पड़ रहा है. वहीं, किसान सुबरुत राय ने बताया कि वह धान, गन्ना, लाई और मसूर की खेती करते थे, उसमें मुनाफा न के बराबर था. यही कारण है कि अब आधुनिक खेती की ओर रुख करना पड़ रहा है.