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मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के 33 साल पुराने मुकदमे को वापस लेने की याचिका दायर

उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ वर्षों से चल रहे मुकदमे को वापस लेने की याचिका दायर की गई है. बता दें कि यह मामला 33 साल पुराना है, जिसे लेकर एमपी-एमएलए विशेष कोर्ट में विशेष लोक अभियोजक संदीप कुमार सिंह ने प्रार्थना पत्र दिया है.

33 साल से लंबित है मामला.
33 साल से लंबित है मामला.

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Published : Oct 30, 2020, 1:53 PM IST

रायबरेली:उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ चल रहे वर्षों पुराने आपराधिक मामले को वापस लेने की कवायद शुरू हो गई है. करीब 33 साल पुराने इस मामले में मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के अतिरिक्त दो नामजद आरोपी समेत 22 अन्य आरोपी बनाए गए थे.

अगली सुनवाई 5 नवंबर निर्धारित
गत दिनों 27 अक्टूबर को रायबरेली के जिला और सत्र न्यायालय कार्यालय परिसर में बने एमपी-एमएलए विशेष कोर्ट में विशेष लोक अभियोजक संदीप कुमार सिंह ने प्रार्थना पत्र दिया. इस दौरान उन्होंने मुकदमा वापस लेने की याचिका दायर की है. फिलहाल मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख 5 नवंबर 2020 तय की गई.

1987 का डलमऊ के मुराई बाग की है घटना
कोर्ट के विशेष अभियोजक संतोष सिंह चौहान ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि करीब 33 वर्ष पहले एक मामले में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य नामजद अभियुक्त थे. उनके अलावा 22 अन्य लोग भी डलमऊ के मुराई बाग की उस घटना में आरोपी थे. बताया जा रहा है कि घटना 30 जून 1987 की है. इस दिन फायर ब्रिगेड वाहन के ड्राइवर द्वारा एफआईआर में यह कहा गया था कि मुराई बाग चौराहे के निकट राजाराम भारती, राम सिंह समेत स्वामी प्रसाद मौर्य व 20 अन्य अज्ञात लोगों ने मारपीट करके उनके वाहन में आग लगने की कोशिश की थी. हालांकि बाद में नवंबर 2008 में शासन ने मुकदमा वापसी की मंजूरी दी थी.

विशेष अभियोजक द्वारा दाखिल की गई याचिका
MP/MLA कोर्ट रायबरेली में 27 अक्टूबर को याचिका दायर करते हुए इसके जल्द निस्तारण के लिए प्रार्थना पत्र दिया गया है. न्यायाधीश द्वारा इसकी सुनवाई के लिए 5 नवंबर की तारीख निर्धारित की गई है. वहीं मामले के जल्द ही निस्तारण की उम्मीद जगी है. बताते चलें कि कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य का रायबरेली जनपद से पुराना नाता रहा है. रायबरेली के डलमऊ विधानसभा से वह चुनाव जीतकर विधायक और मंत्री भी बने थे. उक्त घटना के समय स्वामी प्रसाद मौर्य लोकदल में हुआ करते थे.

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