रायबरेली:जिले में ऐसी ग्राम सभाओं की कमी नहीं है, जहां पर मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम) जॉब कार्ड धारकों को न तो काम ही मिल रहा है और न ही मजदूरी मिली है. हालांकि प्रशासनिक अमला हर साल करोड़ों रुपये का धन आवंटन मनरेगा के जरिये करने का दावा करता है. मोदी सरकार ने भी इसी योजना के जरिये लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने की दलील दी है, लेकिन जिले में यह दलील सही साबित होती नहीं दिख रही है.
जानें क्या है मनरेगा
मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) एक भारतीय श्रम कानून और सामाजिक सुरक्षा उपाय है. इसका उद्देश्य कार्य करने के अधिकार को सुरक्षित रखना है. इसे यूपीए शासनकाल में शुरू किया गया था. मनरेगा को एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों की गारंटीकृत मजदूरी रोजगार प्रदान करके ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा को बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था. इसके तहत प्रत्येक परिवार के वयस्क सदस्यों को अकुशल मैनुअल काम दिया जाता.
सरकारी उदासीनता के शिकार जॉब कार्ड धारक
मोदी सरकार ने भी इसी योजना के जरिये लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने की दलील दी है, लेकिन इसकी हकीकत कुछ और ही है. सरकारी योजनाओं का सही क्रियांयवन न हो पाना पूर्व की सरकारों के लिए भी चुनौती साबित हुआ है. प्रदेश में सरकारें भले ही बदल गई हों, लेकिन अधिकांश गांवों की परिस्थितियों में बदलाव नहीं दिख रहा है. सरकार बदलने के बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों की दुर्दशा फिलहाल सुधरती नहीं दिखती. सही मायनों में सरकारी उदासीनता के कारण सरकारी योजनाएं साकार रूप लेने में विफल साबित होती हैं. यही कारण है कि किसानों को राहत नहीं मिल पाती.