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जयंती विशेष: बेमिसाल रहा है इंदिरा गांधी का रायबरेली से नाता - अटल बिहारी बाजपेई

स्वतंत्र भारत के इतिहास में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूरी दुनिया की राजनीति पर अमिट छाप छोड़ी है. इंदिरा अपने निर्भीक फैसलों और दृढ़निश्चय के चलते ‘लौह महिला’ कही गईं. आज देश व्यक्तित्व की धनी महिला इंदिरा गांधी की 103वीं जयंती मना रहा है. आइये जानते हैं इंदिरा गांधी और रायबरेली जिले का कैसा संबंध रहा है...

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पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 103वीं जयंती.

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Published : Nov 19, 2020, 10:34 AM IST

रायबरेली: देश पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 103वीं जयंती मना रहा है. इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद में हुआ था. देश दुनिया में 'आयरन लेडी' के नाम से विख्यात रहीं इंदिरा का उत्तर प्रदेश के रायबरेली से गहरा नाता रहा है और ताउम्र उन्होंने यहां के लोगों से अपने रिश्ते को बनाए रखा. रायबरेली ही वह संसदीय सीट रही जहां से चुनकर उन्हें देश के प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला. वह देश की पहली व अब तक की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रही हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 103वीं जयंती.
इंदिरा थीं बेजोड़
'यूं तो रायबरेली से तमाम महारथियों का नाता रहा है. कई ऐसे रहे हैं, जिन्होंने यहीं की माटी में जन्मे. तमाम ऐसे भी रहे हैं, जिन्होंने अपनी कर्मभूमि के रूप में रायबरेली को चुना. विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े ऐसे तमाम दिग्गजों ने अपनी काबिलियत का लोहा देश दुनिया में मनवाया. स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से लेकर साहित्यकारों तक, शूरवीरों से लेकर राजनीतिज्ञों तक हर क्षेत्र में रायबरेली से जुड़े लोगों का दबदबा रहा है, लेकिन इंदिरा का व्यक्तित्व सभी पर भारी था. वह बेजोड़ रहीं. यही कारण है कि रायबरेली में ऐसे तमाम लोग हैं जो इंदिरा से जुड़ी यादों को आज भी संजोए रखे हैं'.
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 103वीं जयंती.
अटल ने कहा था है 'दुर्गा का साक्षात स्वरुप'
रायबरेली के स्थानीय निवासी ज्योतिष शास्त्री पंडित बृजभूषण बाजपेई ने बताया कि इंदिरा गांधी की छवि अन्य सभी नेताओं से भिन्न रही है. यही कारण रहा कि अटल बिहारी बाजपेई ने उन्हें साक्षात शक्ति का स्वरूप बताया था. इंदिरा के साहसी व्यक्तित्व का हर कोई मुरीद हो जाता था.
इंदिरा के दौर में हर आम व खास था कांग्रेस वर्कर
कांग्रेस के जिलाध्यक्ष पंकज तिवारी कहते है कि इंदिरा गांधी के दौर की बात अलग ही थी. सभी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों से उनका सीधा संवाद होता था. हर किसी से उनका लगाव गहरा था. पार्टी के लिए भी वह स्वर्णिम दौर था. यहां का हर आम व खास आदमी कांग्रेस से जुड़ा रहता था. कांग्रेस पार्टी व दल के सामने अन्य पार्टियां टिक भी नहीं पाती थीं.
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 103वीं जयंती.


पैदल चलकर गई थी आचार्य द्विवेदी के गांव दौलतपुर
इंदिरा गांधी से जुड़े संस्मरण को याद करते हुए राजनीतिक जानकार विजय विद्रोही कहते हैं कि बात वर्ष 1972 की है. इंदिरा गांधी ने हिंदी साहित्य के शलाका पुरुष व आधुनिक हिंदी के पितामह करार दिए जाने वाले आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की जन्मस्थली दौलतपुर जाने का निर्णय लिया था. रास्ता बेहद कठिन था. सराय बैरिया खेड़ा से आगे जाने का रास्ता नहीं हुआ करता था. वह बैल गाड़ी से आगे बढ़ीं और आगे का रास्ता पैदल चलकर ही दौलतपुर गईं. इंदिरा गांधी ने रायबरेली के हर गांव और लोगों से अपना नाता जोड़ा.

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