प्रयागराज: कोरोना से बचने के लिए कोई कोरोना मइया का मंदिर बनाकर पूजा कर रहा है तो कोई हवन करा रहा है, कोई कोरोना के नाम की स्पेलिंग तक बदलकर महामारी को खत्म करने का दावा कर रहा है. सोशल मीडिया पर ऐसे तमाम टोटके वायरल हो रहे हैं. कुछ ऐसा ही एक उपाय प्रयागराज के बादल गंज गांव की महिलाएं कर रही हैं. इस गांव की महिलाएं बाग में एक साथ खाना बनाती हैं और वहीं बैठकर खाना खाने के बाद प्रसाद रूपी खाना अपने घर भी ले जाती हैं.
महिलाएं मसुरियन माता का ध्यान कर चढ़ाती हैं जल
बादल गंज गांव प्रयागराज शहर से दूर घूरपुर इलाके में पड़ता है. इस गांव के लगभग सभी घर की एक महिला सदस्य बाग में सामूहिक रुप से पहुंचकर खाना बनाती हैं. खाने के रुप में महिलाएं रोटी और बाटी-चोखा बनाती हैं. ये महिलाएं उसे प्रसाद मानकर उसी जगह बैठकर खाना खाती हैं और उसी खाने को अपने घर के लोगों को भी खिलाती हैं. परंपरा के मुताबिक सभी महिलाएं भोजन के बाद वहीं बैठकर भजन-कीर्तन करती हैं. इसके बाद घर जाने से पहले सभी महिलाएं एक लोटे में जल भरकर परिक्रमा करते हुए उस जल को मसुरियन माता का ध्यान करके पीपल के पेड़ में चढ़ाती हैं. कुछ महिलाएं जल को गांव के रास्ते में भी डालती हुई जाती हैं. ग्रामीणों की मान्यता है कि ऐसा करने से गांव में किसी तरह की बाधा और महामारी प्रवेश नहीं कर सकेगी. इसी वजह से ग्रामीण इस परंपरा का पालन कर रहे हैं.
प्रयागराज में बाग में खाना बना रही महिलाएं इस गांव में अब तक किसी को नहीं हुआ कोरोना
इस गांव के लोगों की मान्यता है कि साल में 7 दिन बाग में एक साथ पेड़ के नीचे भोजन बनाने और खाने से कुल देवी प्रसन्न होती हैं और उनकी कृपा गांव पर बनी रहती है. इसी वजह से गांव में कोरोना महामारी प्रवेश नहीं कर सकी है. ऐसे में कोरोना की पहली और दूसरी लहर से गांव को सुरक्षित बचाने वाली देवी को प्रसन्न करने के लिए ग्रामीण महिलाएं बाग में भोजन और भजन कर रही हैं. गांव की महिलाओं का कहना है कि कोरोना की दूसरी लहर से पूरा देश प्रभावित हुआ था, लेकिन उनका गांव महामारी के प्रकोप से सुरक्षित बचा हुआ है. महिलाओं का कहना है कि उनके गांव में अब तक कोरोना से न किसी की मौत हुई न ही कोई ग्रामीण संक्रमित हुआ है. इस महामारी से आगे भी सुरक्षित बचने के लिए महिलाएं पूजा-पाठ कर रही हैं.
बाग में बन रहा बाटी-चोखा. भोजन बनाते समय शुद्धता का रखा जाता है खास ध्यान
ये महिलाएं खाना बनाने के लिए भले ही बाग में जाती हैं, लेकिन इस दौरान शुद्धता और साफ सफाई का पूरा ध्यान रखा जाता है. महिलाएं बाग में जाने से पहले स्नान-ध्यान कर करती हैं. उसके बाद ही सामान लेकर खाना बनाने के लिए बाग में जाती हैं. भोजन बनाते समय भी महिलाएं भजन और कीर्तन करती रहती हैं. खाना बनाने के बाद इसी भोजन का भोग भी लगाया जाता है और उसे प्रसाद के रूप में सभी अपने घर भी ले जाती हैं.
जल अर्पंण के लिए बैठी महिलाएं. इस पूरे कार्यक्रम के दौरान किसी भी महिला के चेहरे पर मास्क नहीं दिखा न ही कोई सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन करता हुआ नजर आया.