प्रयागराज : जनपद में स्थित सायमंड्स(Symonds) कंपनी से निर्मित बल्ले का बोलबाला एक बार फिर से देश-दुनियां में देखने को मिलेगा. करीब 25 साल पहले तक सायमंड्स कंपनी के बल्ले अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के दौरान खूब देखने को मिलते थे. भारत के साथ ही पाकिस्तान ऑस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड व अफ्रीका समेत कई देशों के नामचीन खिलाड़ी संगम नगरी में बनने वाले इस बैट से बल्लेबाजी करते थे. मशहूर क्रिकेटर कपिल देव समेत कई विदेशी खिलाड़ी प्रयागराज की सायमंड्स कंपनी में बने बल्ले उपयोग कर चुके हैं. लगभग 25 साल पहले सायमंड्स कंपनी ने किन्हीं कारणों की वजह से खेल का समान बनाना बंद कर दिया था. लेकिन अब कंपनी एक बार फिर बैट बनाने की शुरुआत करने जा रही है.
सायमंड्स कंपनी ने वर्ष 1960 के करीब बैट बनाने का काम शुरू किया था. कंपनी का यह काम वर्ष 1997 तक चलता रहा. इन 37 सालों के सफर से सायमंड्स के बैट का नाम पूरी दुनिया में फैल चुका था. कंपनी के मालिक आर. एन. बनर्जी ने फैक्ट्री की शुरूआत के समय कुछ दिनों तक इंग्लैंड की कंपनी के साथ मिलकर बैट बनाने काम किया था. बाद में कंपनी ने विदेशी कंपनी से अलग होकर सायमंड्स के नाम से खुद के लिए बल्ले बनाने का काम किया.
1960 के दशक के उस दौर में इंग्लैंड के बाहर इंग्लिश विलो बैट बनाने वाली देश दुनिया की पहली कंपनी सायमंड्स ही थी. भारत ने जब 1984 में पहली बार क्रिकेट का विश्वकप जीता, उस वक्त के कई क्रिकेटर सायमंड्स के बल्ले से ही बल्लेबाजी करते थे. कंपनी से जुड़े लोगों का दावा है कि कपिल देव के साथ ही कई दूसरे देशी और विदेशी खिलाड़ी कंपनी में आते थे. हालांकि 1997 में कंपनी ने कुछ वजहों से क्रिकेट के समान बनाने बंद कर दिए थे.जिसके बाद क्रिकेटर इस कंपनी के बल्ले को लिए काफी परेशान रहते थे.
आखिर क्यों हैं सायमंड्स के बल्ले खास
सायमंड्स के बल्ले के बारे में कहा जाता है कि इस पर बॉल टकराने के बाद दोगुनी रफ्तार से वापस जाती थी. बैट की बेहतरीन लकड़ी और उसके वजन के कारण देश दुनिया के खिलाड़ी इस बैट को बहुत पसंद करते थे. उस वक्त के फैक्ट्री के कारीगर बताते हैं कि बैट की लकड़ी को तकनीक और मशीनों से कम्प्रेस करके इस तरह का बनाया जाता था. यही वजह है कि देश ही नहीं बल्कि दूसरे देशों के खिलाड़ी भी इस बैट के दीवाने थे.