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पिता के गिफ्ट किए हुए स्कूटर से मां को दुनिया की सैर कराने निकले 'श्रवण कुमार', 66 हजार किमी की यात्रा कर चुके

प्रयागराज पहुंचे मैसूर के रहने वाले कृष्ण कुमार ने बताया कि वे अपनी मां को दुनिया दिखाने पहुंचे हैं. वे स्कूटर से मां को लेकर निकले हैं. वे अभी तक 66 हजार किमी की यात्रा पूरी कर चुके हैं.

मैसूर के कृष्ण कुमार मां को दुनिया की सैर कराने निकले
मैसूर के कृष्ण कुमार मां को दुनिया की सैर कराने निकले

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Published : Apr 8, 2023, 11:58 AM IST

Updated : Apr 8, 2023, 2:47 PM IST

मैसूर के कृष्ण कुमार मां को दुनिया की सैर कराने निकले

प्रयागराज: टूटी हुई मोबाइल स्क्रीन, दो हेलमेट, बैग में कुछ जरूरी सामान, दो बोतल पानी और एक छाता लेकर 25 साल पुरानी बजाज चेतक स्कूटर से कृष्ण अपनी मां को दुनिया दिखाने निकले हैं. इस यात्रा को उन्होंने मातृ सेवा संकल्प यात्रा नाम दिया है. अभी तक 66 हजार 889 किमी. की दूरी तय कर धर्म और आस्था की नगरी प्रयागराज पहुंचे. यहां गंगा स्नान किया. 20 साल पहले पिता ने स्कूटर गिफ्ट दिया था. उन्होंने कहा कि उनकी मुहिम मां को पूरा देश घुमाने की है.

मैसूर के रहने वाले कृष्ण कुमार ने एक बार फिर श्रवण कुमार की याद ताजा कर दी. अपनी 73 वर्षीय मां को अपने 20 साल पुराने स्कूटर से लेकर पूरे देश का भ्रमण कराने निकले हैं. भारत के अधिकतर राज्यों समेत नेपाल, भूटान, म्यांमार जा चुके हैं. दक्षिणामूर्ति कृष्ण कुमार कर्नाटक के मैसूर के बोगांदी के रहने वाले हैं. मां चुडारत्नम को स्कूटर से देश और पड़ोसी देशों का भ्रमण कराते हुए अब तक 66 हजार किलोमीटर की दूरी तय कर चुके हैं. न कोई लक्ष्य न कोई पता कि कब तक दूरी तय करनी है. कृष्ण कुमार कहते हैं कि बस चलते जाना है, जितना हो सके मां को देश दुनिया का भ्रमण कराना है.

मां की यात्रा के लिए 2016 में त्यागी नौकरी

कृष्ण कुमार की मानें तो 2016 में वे मल्टीलेवल कंपनी में अधिकारी पद पर कार्यरत थे. अपनी मां के लिए नौकरी त्याग दी. उनकी मातृ सेवा संकल्प यात्रा का पड़ाव संगमनगरी में पड़ा है. यहां आकर उन्होंने मां को संगम स्नान कराने के बाद यहां के मंदिरों के दर्शन कराए. 44 वर्षीय कृष्ण कुमार अपनी 73 वर्ष की मां चूड़ा रत्नम्मा को लेकर मुठ्ठीगंज स्थित रामकृष्ण मिशन आश्रम में रुके हुए हैं.

मां की सेवा के लिए नहीं की शादी

पेशे से कंप्यूटर इंजीनियर रहे कृष्ण कुमार ने शादी नहीं की. अपने बारे में उन्होंने बताया कि कर्नाटक के मैसूर में उनकी मां ने ताउम्र संयुक्त परिवार की सेवा में बिता दी. वन विभाग में कार्यरत रहे पिता दक्षिणामूर्ति की 2015 में मृत्यु हुई तो बंगलौर में रह रहे कृष्ण कुमार उन्हें अपने पास ले आए. शाम को ऑफिस से लौटकर दोनों मां-बेटे आपस में बात कर रहे थे तो एक दिन मां ने बताया कि उन्होंने घर के बाहर कभी कोई स्थान नहीं देखा. इस पर उन्हें लगा जिस मां ने उन्हें पूरी दुनिया देखने के काबिल बनाया, घर के हर शख्स को बनाने के लिए अपना पूरा जीवन खपा दिया. उन्होंने कहा कि अब वह मां को दुनिया दर्शन कराएंगे. लिहाजा वर्ष 2016 में उन्होंने नौकरी छोड़कर यात्रा शुरू कर दी.

20 वर्ष पहले पिता द्वारा दी हुई गिफ्ट से शुरू की यात्रा

कृष्ण कुमार ने कहा कि पिता का दिया गिफ्ट वरदान साबित हुआ. इस यात्रा में उन्होंने पिता के स्कूटर को हमसफर बनाया, ताकि पिता की याद भी बनी रहे. इसी स्कूटर से वह नेपाल, भूटान, म्यांमार देशों की यात्रा मां के साथ कर चुके हैं. अब कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरे दर्शन पर निकले हैं.

लॉकडाउन में भी नहीं रुका सफर

अनुभव साझा करते हुए कृष्ण कुमार ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान वह मां के साथ यात्रा पर थे. भूटान सीमा पहुंचे तो पता चला कि सीमाएं सील हैं. कोरोना के उस दौर में एक माह 22 दिन उन्होंने भारत-भूटान सीमा के जंगलों में गुजारे. इसके बाद जब उनका पास बना तो एक सप्ताह में 2673 किलोमीटर स्कूटर चलाकर वापस मैसूर आ गए. सब कुछ सामान्य होने के बाद 15 अगस्त 2022 से उन्होंने दोबारा यात्रा शुरू की है.

किसी के न रहने पर इज्जत देने का क्या मतलब

यात्रा के पीछे की प्रेरणा के बारे में वह बताते हैं कि जब लोग दुनिया से अंतिम विदा ले लेते हैं तो उनकी फोटो पर माला चढ़ाकर मृतक की इच्छाओं के बारे में बातें करते हैं, उन्हें याद करते हैं. जबकि रिश्तों को, व्यक्तियों का खयाल जीते जी रखना चाहिए. उन्होंने कहा कि वे यह मलाल लेकर नहीं जीना चाहते थे. इसलिए पिता के गुजर जाने के बाद मां को अकेला छोड़ने की बजाय उन्हें दुनिया दिखाने का निर्णय किया और यात्रा पर निकल पड़े.

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Last Updated : Apr 8, 2023, 2:47 PM IST

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