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Published : Aug 26, 2021, 12:05 PM IST

Updated : Aug 26, 2021, 12:20 PM IST

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सरकार दे रही संस्कृति की दुहाई और संस्कृत महाविद्यालय हुए शिक्षक विहीन, भर्ती पर लगा रखी है रोक

प्रयागराज के 42 महाविद्यालयों में से 16 में एक भी शिक्षक नहीं हैं जबकि बचे हुए महाविद्यालयों में एक शिक्षक और एक चपरासी के बल पर ही काम किया जा रहा है. लेकिन देववाणी संस्कृत की शिक्षा देने वाले इन महाविद्यालयों के हालात बेहद खराब हैं.

संस्कृति की दुहाई देने वाली भाजपा सरकार में संस्कृत शिक्षा की दुर्दशा
संस्कृति की दुहाई देने वाली भाजपा सरकार में संस्कृत शिक्षा की दुर्दशा

प्रयागराज :देववाणी संस्कृत पठन-पाठन के स्तर पर आज अपनी आखरी सांसें ले रही है. संस्कृत शिक्षा के लिए खोले गए महाविद्यालयों में कर्मचारी लगभग न के बराबर हैं. इनकी भर्ती भी नहीं की जा रही है. इसके चलते किसी महाविद्यालय को क्लर्क तो किसी को एक शिक्षक बतौर शिक्षक, क्लर्क और प्रभारी प्राचार्य तीनों की भूमिका में चला रहे हैं.

शिक्षकों का आरोप है कि संस्कृत शिक्षा को लेकर अध्यापकों की भर्ती की प्रक्रिया 2017 में शुरू भी हुई. लेकिन इस दौरान संस्कृति की वाहक कही जाने वाली प्रदेश की भाजपा सरकार ने इस पर रोक लगा दी. इसे लेकर अदालत तक का दरवाजा खटखटाया गया लेकिन मामला सिफर ही रहा.

खासकर प्रयागराज की बात करें तो यहां सरकार से सहायता प्राप्त 42 संस्कृत महाविद्यालय ऐसे हैं जहां कई सालों से शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है. बीते बीस सालों में जो शिक्षक थे, वो भी रिटायर हो चुके हैं. ऐसे में कई महाविद्यालयों में ऐसे हालात हैं कि इनमें एक भी शिक्षक नहीं रह गया है. कुछ में एक ही शिक्षक पढ़ाने के साथ ही क्लर्क और प्रिंसिपल का काम भी देख रहा है.

गौरतलब है कि देववाणी संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए उन्नीसवीं व बीसवीं सदी में उत्तर प्रदेश में अनेक संस्कृत महाविद्यालयों की स्थापना की गयी. बाद में इन्हें संपूर्णानंद संस्कृत विश्विद्यालय से संबद्ध कर दिया गया था. लेकिन आज वही महाविद्यालय शिक्षक व अन्य स्टाफ की कमी से जूझ रहे हैं.

इससे लगातार संस्कृत सीखने की ललक रखने वाले छात्रों की संख्या में कमी आ रही है. शिक्षकों व अन्य सुविधाओं के अभाव में चलते इन महाविद्यालयों में अब सिर्फ एक दो या तीन स्टाफ ही बचे हैं.

जिले के 42 महाविद्यालयों में से 16 में एक भी शिक्षक नहीं हैं जबकि बचे हुए महाविद्यालयों में एक शिक्षक और एक चपरासी के बल पर ही काम किया जा रहा है. लेकिन देववाणी संस्कृत की शिक्षा देने वाले इन महाविद्यालयों के हालात बेहद खराब हैं.

इन महाविद्यालयों में बीते 20 सालों से शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो रही है. इस दौरान कुछ शिक्षकों की मौत के बाद अनुकंपा नियुक्ति जरूर हुई है.बहरहाल इन महाविद्यालयों की दुर्दशा देखकर आप भी दंग रह जाएंगे.

क्लर्क शिक्षक के साथ प्रधानाचार्य का काम भी

शहर में बहादुरगंज इलाके में स्थित सर्वाय आदर्श संस्कृत महाविद्यालय 120 साल पुराना संस्थान है. सरकार की उपेक्षा की वजह से आज इन विद्यालयों की दुर्दशा हो गयी है.

प्रथमा यानी आठवीं स्तर से लेकर आचार्य परास्नातक कक्षा तक की पढ़ाई करवायी जा रही है. लेकिन जहां दो दशक पहले सैकड़ों छात्र पढ़ाई करते थे, आज वहां महज 70 छात्र ही बचे हैं.

इन बचे हुए छात्रों की पढ़ाई का भी बेहतर इंतज़ाम न होने से छात्र परेशान हो रहे हैं. सर्वाय आदर्श महाविद्यालय में इस समय सिर्फ एक क्लर्क और एक चपरासी ही बचे हैं.

यही क्लर्क इस स्कूल में अब बच्चों को पढ़ाने के साथ ही प्रिंसिपल और क्लर्क का भी काम कर रहे हैं. स्कूल में बचे हुए इस क्लर्क ने बताया कि जो बच्चे बचे हैं, उन्हें देववाणी का बेहतर ज्ञान देने के लिए वो पुराने छात्रों से मदद लेते हैं. इसके साथ ही वो खुद भी आने वाले छात्रों को जितना संभव होता है, पढ़ाते हैं.

भाजपा सरकार दे रही संस्कृति की दुहाई और संस्कृत महाविद्यालय हुए शिक्षक विहीन
सिर्फ एक महिला शिक्षिका के बल पर चल रहा है महाविद्यालय

शहर के ही विवेकानंद मार्ग स्थित सौदामिनी संस्कृत महाविद्यालय में एक मात्र शिक्षिका बची हुई हैं जो करीब 150 छात्रों को पढ़ाने के साथ ही क्लर्क और प्रिंसिपल का भी कामकाज संभालती हैं. इस महाविद्यालय के प्रिंसिपल साल भर पहले रिटायर हो चुके हैं.

उसी वक्त से महिला शिक्षिका प्रधानाचार्य का काम काज भी संभालती हैं. उनका कहना है कि जो छात्र हैं उन सभी को पढ़ाने के साथ ही क्लर्क और प्रधानाचार्य का कामकाज संभालने के लिए दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

वो जिस विषय की टीचर हैं, उसको पढ़ाने के साथ ही दूसरे विषयों को भी पढ़ाने के लिए उन्हें अलग से तैयारी करनी पड़ती है. इससे उन्हें कई बार दूसरे कार्यों के लिए भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. उन्होंने सरकार से मांग की कि जल्द से जल्द संस्कृत महाविद्यालयों की दुर्दशा सुधारने के लिए कदम उठाया जाए.

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2017 में शुरू हुई पर लगा दी गयी रोक

2017 में इन महाविद्यालयों में शिककों की भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई थी लेकिन वर्तमान सरकार ने सत्ता संभालने के साथ ही भर्ती प्रक्रिया पर पाबंदी लगा दी थी. इसे लेकर महाविद्यालय और सरकार के बीच सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंच गया है. कॉलेज मैनेजमेंट को सर्वोच्च अदालत से राहत मिलने की उम्मीद है.

शिक्षकों को भाजपा सरकार से थी काफी उम्मीदें

संस्कृत महाविद्यालयों में तैनात शिक्षकों का कहना है कि पिछले दो दशकों से संस्कृत महाविद्यालय में शिक्षकों की भर्ती नहीं हुई थी. 2017 में जब भर्ती प्रक्रिया शुरू हो गयी थी तो सरकार ने अड़चनें लगाकर उसे रोक दिया. जबकि संस्कृत शिक्षकों और महाविद्यालय प्रबंधन को भाजपा सरकार से राहत मिलने की उम्मीद थी.

2017 में की जा रही भर्ती को रोकने के लिए सर्वोच्च अदालत तक का दरवाजा खटखटा दिया. इसे लेकर अब इन महाविद्यालयों से जुड़े व नौकरी की आस लगाए शिक्षकों की इस सरकार से आस टूट गयी है.

क्या कहते हैं कॉलेज प्रबंधक

इस मामले में सौदामिनी संस्कृत महाविद्यालय के प्रबंधक एम.सी चटोपाध्याय का कहना है कि सरकार संस्कृत महाविद्यालय की लगातार उपेक्षा कर रही है.

सरकार देववाणी कही जाने वाली संस्कृत भाषा के उत्थान के लिए कार्य नहीं कर रही है. जबकि यूपी में भाजपा की सरकार बनने के बाद से लगातार सरकार से मांग की जा रही है कि सरकार परंपरागत संस्कृत महाविद्यालयों के उत्थान के लिए कार्य करे.

संस्कृत महाविद्यालय में भर्ती व तनख्वाह से जुड़े सभी कार्य जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय के जरिए ही होता है. संस्कृत महाविद्यालयों की दुर्दशा के मसले पर जब जिला विद्यालय निरीक्षक से जब बात करने का प्रयास किया गया तो उन्होंने अपना पल्ला झाड़ते हुए साफ कहा कि वो इस मामले में कुछ भी नहीं बोल सकते.

Last Updated : Aug 26, 2021, 12:20 PM IST

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