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High Court से आजम खान को राहत, दंगा भड़काने के मुकदमे में संज्ञान लेने का आदेश रद्द

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दंगा भड़काने के मामले में पूर्व सांसद आजम खान राहत दी है. कोर्ट ने संज्ञान लिए जाने के आदेश को रद्द कर दिया है. राज्य सरकार के द्वारा मुकदमा चलाने की अनुमति देने पर कोर्ट मुकदमे का संज्ञान लेकर आगे की कार्रवाई कर सकती है.

सपा विधायक आजम खान
सपा विधायक आजम खान

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Published : Jan 24, 2023, 11:06 PM IST

प्रयागराज:इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद व विधायक आजम खान को राहत देते हुए उनके विरुद्ध दंगा भड़काने के मुकदमे में अदालत द्वारा संज्ञान लिए जाने के आदेश को रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में राज्य सरकार द्वारा मुकदमा चलाए जाने की अनुमति नहीं दी गई है. इस स्थिति में कोर्ट द्वारा संज्ञान लिए जाने का आदेश अनुचित है. हाईकोर्ट ने कहा कि यदि सरकार इस मामले में मुकदमा चलाने की अनुमति देती है तो कोर्ट मुकदमे पर संज्ञान लेकर आगे की कार्रवाई कर सकती है.


मोहम्मद आजम खान की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति डीके सिंह ने दिया है. याचिका में फिरोजाबाद एसीजेएम कोर्ट में आजम खान के खिलाफ 21 जून 2007 को दाखिल चार्जशीट को रद्द करने तथा आईपीसी की धारा 188 और 153 (ए)के तहत दर्ज मुकदमे की कार्रवाई को रद्द करने की मांग की गई थी. आजम खान के अधिवक्ता का कहना था कि याची 7 बार विधानसभा सदस्य रह चुका है और विधानसभा में विपक्ष का नेता भी रहा है. दो बार उसने लोकसभा चुनाव जीता है तथा उसकी पत्नी व बेटा भी विधानसभा सदस्य है. याची रामपुर के जौहर विश्वविद्यालय का संस्थापक कुलाधिपति भी है. वर्ष 2007 में विधानसभा चुनाव के दौरान आजम खान फिरोजाबाद में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार करने गए थे.आरोप है कि प्रचार के दौरान उन्होंने भड़काऊ व सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने वाले भाषण दिए जिस पर उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 188 और 153 (ए) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। अभियोजन का कहना था कि उनके भाषण की रिकॉर्डिंग भी उपलब्ध है.


आजम खान के वकील का कहना था कि कथित भाषण की सीडी मुकदमे की केस डायरी का हिस्सा नहीं है. पूरी कार्रवाई विद्वेष पूर्ण है क्योंकि उस समय प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सरकार थी. याची समाजवादी पार्टी के पक्ष में प्रचार कर रहा था. आजम खान के वकील का कहना था कि सीआरपीसी की धारा 196 (1) के तहत धारा 153( ए )आईपीसी का मुकदमा सरकार की पूर्व अनुमति के बिना नहीं चलाया जा सकता है. जबकि कोर्ट ने बिना सरकार की पूर्व अनुमति के इस पर संज्ञान ले लिया है.अदालत द्वारा संज्ञान लिया जाना कानून की नजर में दोषपूर्ण है.


दूसरी ओर सरकारी अपर शासकीय अधिवक्ता जेबी सिंह का कहना था कि याची के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी हुआ था उसने कानूनी प्रक्रिया में सहयोग नहीं किया और वर्ष 2018 में आकर उसने इस मुकदमे को चुनौती दी है. यह भी कहा गया कि धारा 153 ए के तहत प्राथमिकी दर्ज करने और गिरफ्तारी के लिए पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है. सिर्फ इस धारा के तहत कोर्ट द्वारा संज्ञान लिए जाने से पूर्व सरकार की पूर्व अनुमति की आवश्यकता है. ऐसे में मुकदमे की कार्रवाई रद्द करने का कोई औचित्य नहीं है. कोर्ट ने कहां की बिना पूर्व अनुमति के धारा 153 ए के तहत मुकदमे पर संज्ञान लेने पर कानून रोक लगाता है. कोर्ट ने संज्ञान लेने के आदेश को रद्द करते हुए कहा है कि यदि राज्य सरकार चाहे तो मुकदमा चलाने की अनुमति दे सकती है और यदि सरकार अनुमति देती है. तो संबंधित अदालत मुकदमा चला सकती है.

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