प्रयागराज:उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में सपा शासन काल के दौरान हुई 600 भर्तियों की सीबीआई जांच करीब 6 साल बाद भी किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकी है. इससे आयोग की भर्तियों की सीबीआई जांच की मांग उठाने वाले प्रतियोगी छात्र मायूस हो गए हैं. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों का कहना है कि अखिलेश यादव के शासनकाल में आयोग में हुई 40 हजार से अधिक पदों की भर्ती की जांच 6 साल से अधिक समय से सीबीआई कर रही है. लेकिन, सीबीआई की सुस्त जांच गति से उन्हें इंसाफ मिलने की उम्मीद कम होती दिख रही है, जिससे प्रतियोगी छात्रों में नाराजगी है. जांच को समय से पूरा करवाने की मांग को लेकर प्रतियोगी छात्रों की तरफ से हाईकोर्ट से भी गुहार लगाई गई है. इस मामले की सुनवाई भी चल रही है.
उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग की 2012 से 2017 के बीच हुई भर्तियों में धांधली का आरोप लगाकर सड़क से लेकर कोर्ट तक में प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति की तरफ से लड़ाई लड़ी जा रही है. समिति के अध्यक्ष अवनीश पांडेय और पूर्व अध्यक्ष प्रशांत पांडेय ने आरोप लगाया है कि उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष रहे अनिल यादव का कार्यकाल सबसे ज्यादा विवादों वाला रहा है. 2012 में प्रदेश में समाजवादी पार्टी के कार्यकाल में हुई आयोग की समस्त प्रकार की भर्तियों का विवादों से नाता जुड़ा रहा. उस दौरान की गई पीसीएस से लेकर पीसीएस जे, लोअर सबऑर्डिनेट, समीक्षा व सहायक समीक्षा अधिकारी समेत तमाम प्रकार की हुईं भर्तियों में धांधली और एक जाति विशेष के अभ्यर्थियों को चयन में प्राथमिकता देने का आरोप लगाया जा रहा था. इसकी वजह से चार साल तक छात्र लगातार आंदोलनरत थे.
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की तरफ से 2012 से 2017 के बीच अलग-अलग पद और विभागों की 600 भर्तियां निकाली गईं, इसके जरिए 40 हजार से अधिक लोगों को नियुक्तियां प्राप्त हुईं. इसमें 500 से अधिक भर्तियां सीधी प्रकार की भर्तियां थीं, जिसमें सीधे इंटरव्यू के जरिए भर्ती की गई. जबकि, कई सीधी भर्तियों में आवेदनों की स्क्रीनिंग करके उन्हें इंटरव्यू के लिए बुलाकर भर्ती की गई थी. 100 के करीब बड़ी भर्तियों को खुली भर्ती के जरिए पूरी की गई थी. इसमें प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा के बाद इंटरव्यू के जरिए नियुक्ति की गई थी. सपा के पिछले शासन काल के दौरान हुई 5 साल में पीसीएस, पीसीएस जे, लोअर सबऑर्डिनेट समीक्षा अधिकारी, सहायक समीक्षा अधिकारी, राजस्व निरीक्षक, फूड सेफ्टी ऑफिसर, चिकित्सा अधिकारी, राज्य विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार, एपीओ, एपीएस, स्वास्थ विभाग, राजकीय डिग्री कॉलेज प्रवक्ता और प्राचार्य के साथ ही पॉलिटेक्निक लेक्चरर समेत कई अन्य भर्तियां हुई थीं. सपा शासनकाल के दौरान हुईं 600 भर्तियों में 40 हजार से अधिक लोगों को नौकरियां मिली हैं. इसमें 5 साल के दौरान अलग-अलग भर्ती परीक्षाओं में लगभग 40 लाख के करीब प्रतियोगी छात्र छात्राएं शामिल हुए थे.
प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के आरोप
यूपी लोकसेवा आयोग की पीसीएस से लेकर तमाम भर्ती में गड़बड़ी और धांधली का आरोप लगाकर प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति की तरफ से सड़क पर आंदोलन किया गया था. अब इसी समिति की तरफ से ही कोर्ट में समय से सीबीआई जांच पूरी करवाने और दोषियों का पता लगाकर उन्हें सजा दिलाने के लिए केस लड़ा जा रहा है. प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष अवनीश पांडेय का कहना है कि जाँच के नाम पर सीबीआई ने धोखा दिया है. केवल माननीय न्यायालय का सहारा बचा है. मांग है कि न्यायालय को प्रति माह समयबद्ध ढंग से जांच रिपोर्ट सौंपी जाए. कम से कम समय में जांच को पूरा कर पीड़ितों को न्याय दिया जाए और जो भी लोग दोषी हों उन्हें जेल भेजा जाए.
इसी तरह से प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति से जुड़े हुए प्रशांत पांडेय का कहना है कि सीबीआई द्वारा 5 साल से ज्यादा समय से जांच की जा रही है. लेकिन, सीबीआई की जांच में अभी तक किसी भी भ्रष्टाचारी की गिरफ्तारी नही हुई है. जबकि, CBI द्वारा दो एफआईआर दर्ज करवाई गई हैं. उनका कहना है कि सैकड़ों भर्तियों में व्यापक तौर पर भ्रष्टाचार के साक्ष्य मिले हुए हैं. उनका कहना है इन भर्तियों के माध्यम से 5 साल में लगभग 40 लाख प्रतियोगी भ्रष्टाचार से पीड़ित हुए, जोकि देश के इतिहास में सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है. इसमें लगभग 40 हजार पदों पर भ्रष्टाचार के रास्ते चयन करके हजारों करोड़ रुपये का भ्रष्टाचार किया गया है. लेकिन, सरकार की उपेक्षा के कारण CBI जांच आगे नहीं बढ़ पा रही है. इसलिए उनकी तरफ से हाईकोर्ट में याचिका दायर करके इंसाफ के लिए गुहार लगाई गई है. याचिका के जरिए उन्होंने मांग की है कि इस जांच को हाईकोर्ट की निगरानी में कराया जाए और एक एसआईटी SIT गठन कर दिया जाए, जो जांच की निगरानी करे.