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गंगा में प्रदूषण का मामला एनजीटी स्थानांतरित करने के आदेश पर पुनर्विचार की याचिका दाखिल

गंगा में प्रदूषण (ganga pollution NGT transferred review petition) के मामले को एनजीटी को स्थानांतरित करने के आदेश दिए गए थे. अब इस आदेश पर पुनर्विचार के लिए याचिका दाखिल की गई है.

ganga pollution NGT transferred review petition
ganga pollution NGT transferred review petition

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Published : Aug 12, 2023, 9:05 PM IST

प्रयागराज :गंगा प्रदूषण मामले को नई दिल्ली स्थित एनजीटी स्थानांतरित करने के आदेश की वापसी के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई है. एडवोकेट विजय चंद्र श्रीवास्तव और सुनीता शर्मा की ओर से दाखिल याचिका में गंगा प्रदूषण की जनहित याचिका की सुनवाई हाईकोर्ट में ही करने की मांग की गई है. कहा गया कि वर्ष 2006 से सुनी जा रही याचिका में सैकड़ों आदेश हुए. 16 साल तक सुनवाई के बाद इसे एनजीटी स्थानांतरित कर दिया गया. याचिका में निहित सभी मुद्दों की सुनवाई अधिकरण में नहीं की जा सकती. पीडीए की महायोजना, माघ व कुंभ मेले की व्यवस्था सहित तमाम मुद्दे हैं. इनकी सुनवाई हाईकोर्ट में ही होनी चाहिए.

महाधिवक्ता ने उठाए थे सवाल :गौरतलब है कि महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र ने एनजीटी एक्ट बन जाने व गंगा प्रदूषण मामले की सुनवाई के लिए अधिकरण गठित होने के आधार पर याचिका की पोषणीयता पर सवाल उठाए थे, कहा था कि जनहित याचिका एनजीटी स्थानांतरित की जाए. जनहित याचिका की सुनवाई कर रही चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पूर्ण पीठ ने महाधिवक्ता की दलीलों को स्वीकार कर लिया. इससे बाद जनहित याचिका एनजीटी स्थानांतरित कर दी गई. पूर्ण पीठ ने कहा था कि गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया है. गंगा प्रदूषण सहित इससे जुड़े सभी मामलों की सुनवाई के लिए एनजीटी का गठन किया गया है. वैकल्पिक उपचार के नाते गंगा से जुड़ी इस याचिका को भी अधिकरण में सुनवाई के लिए भेजा जाए. हालांकि याची के अधिवक्ता ने इसका विरोध किया था. कहा था कि गंगा प्रदूषण के अलावा शहर की अन्य समस्याएं भी याचिका से जुड़ी हैं. लगभग 12 याचिकाओं की एकसाथ सुनवाई होती है. यमुना प्रदूषण मामला भी जुड़ा हुआ है. सरकार कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं कर रही है, तकनीकी आधार पर याचिका की सुनवाई टालने की कोशिश की जा रही है.

स्वामी हरि चैतन्य ब्रह्मचारी ने दाखिल की थी याचिका :गंगा प्रदूषण मामले की याचिका स्वामी हरि चैतन्य ब्रह्मचारी ने दाखिल की थी. बाद में कोर्ट ने इसे गंगा प्रदूषण मामले के रूप में तब्दील कर सुनवाई जारी रखी. याचिका की सुनवाई के दौरान गंगा कछार में लगातार बढ़ रहे अतिक्रमण को रोकने के लिए हाईकोर्ट ने 1978 की अधिकतम बाढ़ बिंदु को आधार मानकर उससे 500 मीटर तक निर्माण पर रोक लगा दी. केवल गंगा में प्रदूषण न करने वाले मठ, मंदिरों के निर्माण व पुराने भवन के पुनर्निर्माण की अनुमति दी गई. साथ ही माघ मेले के दौरान पॉलीथिन की खरीद फरोख्त पर रोक लगा दी. कोर्ट की सख्ती के कारण सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बने और गंगा में सीधे गिरने वाले नालों को बायोरेमेडियल सिस्टम से शोधन की व्यवस्था अपनाई गई. हालांकि सरकारी मशीनरी की उदासीनता व ब्लेम गेम के कारण कोर्ट के निर्देशों का पूरी तरह पालन नहीं किया जा सका.

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