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प्रयागराज: मंदिर में माता की मूर्ति नहीं बल्कि पालने की होती है पूजा, नवरात्रि पर होता है विशेष श्रृंगार

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Published : Sep 30, 2019, 8:08 PM IST

संगम नगरी से विख्यात प्रयागराज में आलोपशंकरी मंदिर में नवरात्रि के दिनों में माता की मूर्ति की नहीं बल्कि पालने का पूजन होता है. पूरे नौ दिन पालने की विशेष श्रृंगार और पूजा अर्चना होेता है.

विशेष श्रृंगार कर मंदिर में पालने की होती है पूजा

प्रयागराज:जिले में स्थित अलोपशंकरी मंदिर देश का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां नवरात्रि में माता की मूर्ति की पूजा नहीं होती है, बल्कि पूरे नव दिन पालने की पूजा की जाती है. मंदिर की मान्यता है कि यहां माता सती की उंगली कटकर गिरी और विलुप्त (अलोप) हो गई.

शहर भर में श्रद्धालुओं की भीड़
शारदीय नवरात्र की शुरूआत रविवार से हो गई है. हर घर में मातारानी विराजित हो गई हैं. शहर के चौक-चौराहों में मां अम्बे के पंडाल सज गए हैं. सुबह से लेकर शाम तक मां जगदम्बे की पूजा करने के लिए मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ लगने लगी है. नवरात्रि के पूरे नव दिन माता रानी के मंदिरों में विशेष श्रृंगार और पूजा पाठ होता है.

विशेष श्रृंगार कर मंदिर में पालने की होती है पूजा.

देश के अलग-अलग कोने से आते हैं श्रद्धालु
दारागंज स्थित अलोपशंकरी माता के मंदिर में नवरात्र के पावन दिनों में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं और माता को चुनरी, माला-फूल और श्रृंगार का सामान चढ़ाते हैं. नवरात्रि के समय माता के पालने को विशेष रूप से फूलों से सजाया जाता है. मंदिर में माता के दर्शन करने के लिए यूपी के साथ केरल, कर्नाटक और साउथ इंडियन से भक्तों भीड़ अधिक होती है.

नवरात्र में पूजा अर्चना करने से होती है मनोकामना पूर्ण
मंदिर के महंत विवेक भारती ने जानकारी देते हुए बताया कि नवरात्र का पूरा नवदिन माता का दिन होता है. जिस तरह सावन माह में भगवान शिव की पूजा होती है उसी तरह नवरात्रि में देवी मां की पूजा पाठ की जाती है. इन दिनों मंदिर में मातारानी साक्षात विराजमान होती हैं इसीलिए नवरात्र के दिनों में अलोपशंकरी देवी मां के दर्शन करने से भक्तों की मनोकामनाएं निश्चित रूप से पूर्ण होती हैं.

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ललिता अलोपशंकरी मंदिर का पुराणों में मिलता है उल्लेख
देवी सती का दाहिने हाथ का पंजा इसी मंदिर के प्रांगण में गिरा था और गिरते ही अलोप हो गया था. इसी कारण मंदिर को ललित अलोपशंकरी मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है. देवी सती का दाहिना पंजा गायब हो जाने से यहां पर माता की मूर्ति की नहीं बल्कि पालने की पूजा होने लगी है. आलोपशंकरी मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है और पूरे देश भर में यह प्रसिद्ध है. मंदिर में पूरे नवदिन विशेष श्रृंगार और पूजा पाठ की जाती है. सुबह से लेकर रात 11 बजे तक नवरात्र में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है.

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