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ललिता देवी के दर्शन से पूरा होता है संगम का स्नान, जानिए क्यों - प्रयागराज संगम मेला

प्रयागराज में पावन माघ मेले की शुरुआत हो चुकी है. हजारों की संख्या में श्रद्धालु संगम पर भक्तिमय भाव से डुबकी लगाने आते हैं. ऐसी मान्यता है कि आस्था की डुबकी लगाने के बाद शक्तिपीठ ललिता देवी मंदिर में दर्शन करने आएंगे तो पुण्य का लाभ दोगुना हो जाता है. आइए जानते हैं शक्तिपीठ की पूरी कहानी...

शक्तिपीठ ललिता देवी
शक्तिपीठ ललिता देवी

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Published : Jan 15, 2021, 5:53 PM IST

प्रयागराज:आस्था की नगरी प्रयागराज में माघ मेले की शुरुआत हो चुकी है. श्रद्धालु पुण्य की डुबकी लगाने संगम तट पहुंचने लगे हैं. मान्यताओं के अनुसार श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने के बाद शक्तिपीठ ललिता देवी मंदिर पर दर्शन करने आएंगे तो पुण्य का लाभ दोगुना हो जाएगा. शक्तिपीठ ललिता देवी मंदिर में सती की उंगलियां गिरी थीं, जिसकी वजह से इस मंदिर को शक्तिपीठ कहा गया है. मंदिर में मां की मूर्ति के अलावा अन्य देवी-देवताओं की भी मूर्ति स्थापित हैं. हर रोज यहां काफी संख्या में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है. मीरापुर स्थित 51 शक्तिपीठ मां ललिता देवी धाम यमुना तट पर स्थित है.

शक्तिपीठ की कहानी

इस शक्तिपीठ का है विशेष महत्व

यही तीर्थराज प्रयाग मां गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम का ही नहीं, बल्कि शक्ति का भी प्रमुख केंद्र है. प्रयागराज में शक्ति की साधना के कई प्रमुख मंदिर जैसे अलोपशंकरी, कल्याणी देवी, ललिता देवी आदि देवी के मंदिर हैं. इन सभी मंदिरों में मां ललिता का मंदिर शक्ति के साधकों के लिए विशेष स्थान रखता है, क्योंकि यह 51 शक्तिपीठों में से एक है. मान्यता है कि प्रयागराज में मां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती मां ललिता के चरण स्पर्श करते हुए प्रवाहित हो रही हैं. यही कारण है कि संगम स्नान के बाद इस पावन शक्तिपीठ के दर्शन का विशेष महात्व है.



स्नान का है महत्व

मंदिर के पुजारी पंडित शिव मूरत मिश्र ने बताया कि माघ मास में स्नान का बेहद महत्व है. संगम में स्नान से काफी पुण्य मिलता है. अगर आप माघ मेला में शामिल होने के लिए जा रहे हैं, तो प्रयाग में मां ललिता माता के दर्शन करने का विशेष महत्व है. माता के दर्शन मात्र से ही श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.



पुराणों में मिलता है उल्लेख

मां ललिता हर किसी के हृदय में वास करती हैं. पौराणिक कथा के अनुसार सती जब अपने पिता प्रजापति दक्ष द्वारा दामाद भगवान शिव का अपमान न सह सकीं, तो उन्होंने नाराज होकर यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया था. जब यह बात भगवान शिव को पता चली तो वह उनके शव को लेकर क्रोध में विचरण करने लगे. माता सती से भगवान शिव के मोह को दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को काट दिया. चक्र से कटकर अलग होने पर जिन 51 स्थान पर सती के अंग गिरे, वह पावन स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित हुए. यहां माता महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के स्वरूप में विराजित हैं.


108 फीट ऊंचा है माता का मंदिर

जिस स्थान पर कभी माता की अंगुलियां गिरी थीं, वहां पर आज एक 108 फीट ऊंचा एक विशाल मंदिर है. प्रयागराज शहर के मध्य में यमुना नदी के किनारे मीरापुर स्थित मोहल्ले में यह मंदिर श्रीयंत्र पर आधारित है. माता के इस पावन शक्तिपीठ पर वैसे तो पूरे साल भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्र के अवसर पर यहां पर विशेष साधना-आराधना के लिए भक्त दूर-दूर से पहुंचते हैं. नवरात्रि के नौ दिनों में माता का प्रतिदिन दिव्य श्रृंगार होता है.




मंदिर परिसर में है प्राचीन पीपल का पेड़

मंदिर के पुजारी ने बताया कि मंदिर परिसर में एक प्राचीन पीपल का पेड़ है. इसके तने में धागा बांधकर भक्तगण माता से अपनी मुराद पूरी होने के लिए प्रार्थना करते हैं. साथ ही यहां पर भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, सीता और राधा-कृष्ण के साथ हनुमान जी की भव्य मूर्ति स्थापित है.



पांडव ने एक रात यहां किया था विश्राम

इस धाम का वर्णन द्वापर युग में भी मिलता है. जब पांडव लाक्षा गृह से बचके निकल थे, तो वह इलाहाबाद के इसी धाम में रुके थे. उन्होंने यहीं पर एक रात विश्राम किया था. उन्होंने इसी जगह पर देवी ललिता की अस्तुति की थी. आज भी यहां वह पांडव कुंड मौजूद है, जहां रात भर पांडव रुके थे. इसी कुंड के पानी से उन्होंने स्नान किया था.



पांडवों ने की थी पूजा

मंदिर के अन्दर एक पीपल का पेड़ है. इसी पेड़ के नीचे पांडवों ने विश्राम किया था, यहीं पर पांडव कूप है. जहां पांडवों ने पूजा की थी और जल पिया था. आज भी उस कुएं को पांडव कूप के नाम से जाना जाता है. मंदिर के अन्दर एक पीपल का पेड़ भी मौजूद है. जहां अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद भक्त पेड़ के चारों तरफ धागा बांधते हैं.


88 हजार ऋषियों की तपोस्थली से स्थापित

पुराणों के अनुसार 88 हजार ऋषियों की तपोस्थली में स्थपित आदि शक्तित्रिपुर सुंदरी जगत जननी ललिता माता का मंदिर एक सौ आठ शक्तिपीठों में माना जाता है. यही कारण है कि अमावस्या, माघ-मास और नवरात्र के अलावा आम दिनों में भी हजारों श्रद्धालु दर्शन-पूजन करने आते हैं.



होती है मनोकामना पूरी

मंदिर के पुजारी के अनुसार हर साल नवरात्र के मौके पर एक विशाल मेला लगता है. देवी के शक्ति पीठ के रूप में जाना जाने वाला यह धाम नवरात्र के अलावा आम दिनों में भी लोगों से भरा रहता है. रोज ही यहां शाम को एक विशेष आरती और देवी का जागरण होता है. जिसमें शामिल होकर श्रद्धालु आस्था के सागर मे गोते लगाते हैं. मंदिर के बाहर पूरे साल मेले जैसा माहौल रहता है. चारों तरफ दुकानें सजी रहती हैं. यहां से सिन्दूर खरीद के सुहागन घर ले जाती हैं. इतना ही नहीं माघ मास में तीर्थयात्री संगम स्नान करने के बाद इस मंदिर में मनोकामना लेकर आते हैं. मान्यता है कि संगम स्नान के बाद मां ललिता देवी धाम में जो भी मनोकामना मांगी जाती है. वह पूर्ण हो जाती है.





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