प्रयागराज: आज भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज (Hartalika Teej) मनाया जा रहा है. इस दिन भगवान शिव और माता गौरी की विशेष पूजा की जाती है. यह त्योहार देश के कई राज्यों में मनाया जाना है. हरतालिका तीज सुहागिन महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है. इसे तीजा के नाम से भी जाना जाता है.
हरतालिका तीज व्रत पूजन शुभ मुहूर्त इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य और अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और माता गौरी से सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद मांगती हैं. हरतालिका तीज व्रत को कुंवारी कन्याएं भी रखती हैं. मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सुहागिनों को सदासुहाग रहने और कुंवारी लड़कियों को अच्छे वर की प्राप्ति होती है. यह व्रत देश के कई राज्यों में मनाया जाता है तो आईये जानते हैं क्या है पूजन का शुभ मुहूर्त और विधि.
शुभ मुहूर्त प्रदोषकाल पूजा मुहूर्त- शाम 5 बजकर 10 मिनट से लेकर 7 बजकर 15 मिनट तक.
प्रातः काल पूजा मुहूर्त- सुबह 4 बजे से लेकर 6 बजे तक रहेगा.
पूजा विधि
हरतालिका तीज पर व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती को साक्षी मानकर व्रत का संकल्प लें. प्रात: काल पूजा करना शुभ माना जाता है अगर संभव ना हो तो शाम के समय पूजा कर सकते हैं. इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती व भगवान गणेश की बालू या काली मिट्टी से बनी मूर्ति का पूजन किया जाता है. पूजन स्थान में साफ सफाई करके फूलों से सजाएं. एक चौकी रखें और उसपर केले के पत्ते बिछाएं. इसपर भगवान शिव माता गौरी और भगवान गणेश की मूर्ति को स्थापित करें. इसके बाद माता गौरी को सुहाग का सामान व भगवान शिव को धोती फल आदि चढ़ाकर मंत्रोच्चार से भगवान की पूजा करें, तीज व्रत की कथा सुनें और आखिर में आरती करें. इस व्रत में रात्रि जागरण करने का विशेष विधान है. अगले दिन माता गौरी को सिंदूर चढ़ाएं पूजा करें इसके बाद भोग लगाकर खुद भी प्रसाद ग्रहण करें और अपना व्रत खोलें.
व्रत नियम
हरतालिका व्रत निराहार और निर्जला किया जाता है. इस व्रत के दौरान महिलाएं सुबह से लेकर अगले दिन सुबह सूर्योदय तक जल ग्रहण तक नहीं कर सकतीं. महिलाएं 24 घंटे तक बिना अन्न और जल के हरतालिका तीज का व्रत रहती हैं. इस व्रत को कुंवारी लड़कियां और शादीशुदा महिलाएं दोनों ही कर सकती हैं.
क्या है मान्यता
मान्यता है कि इस व्रत को जब भी कोई लड़की या महिला एक बार शुरू कर देती है तो हर साल इस व्रत को पूरे नियम के साथ करना पड़ता है. इस व्रत को आप बीच में नहीं छोड़ सकती हैं. इस दिन महिलाएं नए कपड़े पहनकर सोलह शृंगार करती हैं. वहीं आसपास की सभी व्रती महिलाएं रात भर भजन गाकर रात्रि जागरण करती हैं.