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रेलवे कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक

इलाहाबाद हाईकोर्ट की अलग-अलग खंडपीठों ने अलग-अलग मामलों में शासनादेशों को रद्द कर दिया है. पहले मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रेलवे कर्मचारियों के खिलाफ आपराधिक मामले में कार्रवाई पर रोक लगा दी है. वहीं एक अन्य मामले में बाबू खनन पट्टा निरस्त कर रॉयल्टी वसूली और दो साल के लिए ब्लैकलिस्ट किए जाने के जिलाधिकारी के आदेश को भी हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट

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Published : Sep 14, 2019, 11:11 PM IST

प्रयागराज:इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रेलवे आगरा कैंट के कर्मचारियों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले की कार्रवाई पर रोक लगा दी है और शिकायतकर्ता सहित राज्य सरकार से जवाब मांगा है. यह आदेश न्यायमूर्ति ओम प्रकाश ने लोकेंद्र सिंह और 3 अन्य की याचिका पर दिया है.

याची का कहना है कि उनमें से एक ने गलत पार्किंग की एफआईआर दर्ज कराई, तो आरोपी ने याचियों को परेशान करने के लिए फंसाने की दुर्भावना से मारपीट और अन्य आरोपों में एफआईआर दर्ज कराई है. जबकि ऐसी घटना हुई ही नहीं. शिकायतकर्ता नरेंद्र सोढ़ी के खिलाफ याचियों ने कार्रवाई की थी. बदले में उसने झूठा केस कायम कराया है. कोर्ट ने एसीजे और रेलवे आगरा की अदालत में चल रहे मुकदमे की सुनवाई रोक दी है.

बालू खनन पर जिलाधिकारी के आदेश को हाईकोर्ट ने किया रद्द
वहीं एक अन्य मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बालू खनन पट्टा निरस्त कर रॉयल्टी वसूली और दो साल के लिए ब्लैकलिस्ट करने के जिलाधिकारी प्रयागराज के 21 जून 19 के आदेश को रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि ऐसा करते समय कानूनी प्राक्रिया का पालन नहीं किया गया. कोर्ट ने सरकार को नियमानुसार विहित प्रक्रिया के तहत कार्रवाई की छूट दी है. यह आदेश न्यायमूर्ति बीके नारायण तथा न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की खण्डपीठ ने सुनील रजक की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है.

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याची को फरवरी 2018 में बारा तहसील के प्रतापपुर गांव में 8 एकड़ यमुना किनारे बालू खनन का 5 साल का पट्टा दिया गया. एक लाख 60 हजार क्यूबिक मीटर बालू साल भर में खोदा जाना था. याची ने निर्धारित धनराशि जमा कर दी. कुम्भ मेले के कारण वह निर्धारित बालू खनन नहीं कर पाया और खनन विभाग को प्रत्यावेदन दिया. दूसरी तरफ विभाग ने नए साल के पट्टे की किश्त जमा करने की नोटिस दी. जमा न करने पर पट्टा निरस्त कर दिया और अधिक समय तक खुदाई की रॉयल्टी मांगी और साथ ही ब्लैकलिस्ट कर दिया. यह आदेश जिलाधिकारी ने दिया. कोर्ट ने कहा कि उन्हें इसका अधिकार नहीं था. दूसरी तरफ ब्लैकलिस्ट करने की कार्रवाई में प्रक्रिया की अवहेलना की गयी, जिस पर कोर्ट ने जिलाधिकारी के आदेश को रद्द कर दिया है.

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