प्रयागराज: प्रदेश में गंगा सफाई को लेकर सरकारी विभागों की उदासीनता पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई है. कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा(National Mission for Clean Ganga) का पूरा प्रोजेक्ट ही आंखों में धूल झोंकने वाला है. गंगा प्रदूषण को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की पीठ ने गंगा में प्रदूषण स्तर की जांच रिपोर्ट की लीपापोती पर केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड व राज्य प्रदूषण बोर्ड को आड़े हाथों लिया.
आईआईटी कानपुर और बीएचयू की प्रदूषण रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं करने पर कोर्ट ने केंद्रीय और राज्य प्रदूषण बोर्ड कि खिंचाई की. कोर्ट ने इससे पूर्व निदेशक नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के निदेशक से पूछा था कि नमामि गंगे योजना(Namami Gange Scheme) के तहत अब तक कुल कितनी रकम खर्च की गई है. बुधवार को मामले की सुनवाई के दौरान निदेशक की ओर से कोई जानकारी कोर्ट को नहीं दी जा सकी. साथ ही अन्य जिन विभागों से कोर्ट ने जानकारियां मांगी थीं, उन सभी ने जानकारी उपलब्ध कराने के लिए और समय की मांग की है. कोर्ट ने कहा कि गंगा सफाई को लेकर कोई भी गंभीर नहीं है और विभागों के पास कोई जानकारी नहीं है. कोर्ट ने जल निगम के पास एनवायरनमेंट का विशेषज्ञ नहीं होने पर भी नाराजगी जाहिर की.