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छल से नौकरी पाने वाला राहत का हकदार नहीं : हाइकोर्ट - court did not give relief to employed on fake documents

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा छल से नौकरी पाने वाला राहत का हकदार नहीं है. यह आदेश न्यायमूर्ति आलोक माथुर ने रीता पाण्डेय व 7अन्य लोगों की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया.

हाइकोर्ट
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Published : Dec 9, 2021, 11:03 PM IST

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि छलकपट पूर्वक नौकरी प्राप्त करने वाला व्यक्ति राहत नहीं पा सकता कि वह सेवा में काफी लंबे समय से नौकरी पर है.

कोर्ट ने कहा है कि जैसे ही साबित होगा कि नौकरी फर्जी दस्तावेजों के आधार पर या किसी प्रकार का छल करके प्राप्त की गई है तो नौकरी गंवानी ही पड़ेगी. कोर्ट ने छल से नौकरी प्राप्त करने वाले सहायक अध्यापकों को किसी प्रकार की राहत देने से इनकार करते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी है.

यह आदेश न्यायमूर्ति आलोक माथुर ने रीता पाण्डेय व 7अन्य की याचिका पर दिया. याचीगण देवरिया के मां रेशमा कुमारी बालिका इंटर कॉलेज में सहायक अध्यापक हैं. उन्होंने सहायक निदेशक बेसिक गोरखपुर द्वारा बीएसए देवरिया को याचीगण के विरुद्ध फर्जी तरीके से नियुक्ति प्राप्त करने की शिकायत की नियमित जांच करने के आदेश को चुनौती दी थी.

सहायक निदेशक ने याचीगण के विरुद्ध प्राप्त शिकायत पर स्वयं प्रारं‌भिक जांच की थी और पाया‌ कि याचीगण के विरुद्ध फर्जी दस्तावेजों पर नौकरी प्राप्त करने के आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं. इस आधार पर बीएसए को नियमित जांच का आदेश दिया था.

याचिका में दलील दी गई कि इन्हीं शिकायतों की जांच डीएम के आदेश से बीएसए ने करवाई थी और याचीगण के विरुद्ध आरोप सही नहीं पाए गए. जांच रिपोर्ट डीएम को भेजी जा चुकी है.

इसलिए दोबारा नियमित जांच का औचित्य नहीं है. कोर्ट ने कहा कि सहायक निदेशक की जांच में याचीगण की नियुक्ति में गंभीर अनियमितता पाई गई है. कुछ के दस्तावेज सही नहीं हैं तो कुछ प्रबंधक के रिश्तेदार हैं. कुछ निर्धारित योग्यता और बिना विज्ञापित पदों के नियुक्त हुए हैं. याचीगण की दलील थी कि चूंकि वह दस वर्ष सेवा में बिता चुका है इसलिए इतने लंबे समय बाद किसी शिकायत की जांच करना उत्पीड़न है.

कोर्ट ने इस दलील को अस्वीकार करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि फर्जी दस्तावेजों पर नौकरी प्राप्त करने वाले को नौकरी गंवानी पड़ेगी. सहायक निदेशक की जांच में कोई खामी है और प्रथम दृष्टया आरोप गंभीर हैं. इसलिए नियमित जांच से राहत नहीं दी जा सकती है.

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