प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि कानून संशोधित होने से पहले दिये गये, अदालती फैसले के आधार पर लाभ नहीं दिया जा सकता. भूतलक्षी प्रभाव वाले कानून संशोधन को चुनौती दिये बगैर उसके उपबंधो की अनदेखी नहीं की जा सकती. कोर्ट ने कहा खाली पद पर नियमानुसार कानून के तहत की गई नियुक्ति ही मान्य है.
कोर्ट ने कहा समय से नियमित न करना वरिष्ठता व अन्य सेवा परिलाभों से वंचित करना है. सरकार पिक एण्ड चूज नहीं कर सकती. सेवा नियमितीकरण नियमावली के लाभ से किसी को वंचित नहीं किया जा सकता. इसी के साथ कोर्ट ने लघु सिंचाई विभाग के चीफ इंजीनियर को ललितपुर से सेवानिवृत्त कनिष्ठ अभियंता राज बहादुर को सेवानिवृत्ति परिलाभो सहित पेंशन भुगतान पर दो माह में निर्णय लेने और उसके छः हफ्ते में सेवा जनित परिलाभों का भुगतान करने का निर्देश दिया है.
यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र तथा न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने राज्य सरकार की विशेष अपील को निस्तारित करते हुए दिया है. अपील पर राज्य सरकार के अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता रामानंद पांडेय ने बहस की. मालूम हो कि याची की नियुक्ति सिंचाई विभाग में कनिष्ठ अभियंता के रूप में 1 जनवरी 1989 को की गई. वह बिना पद के दैनिक वेतन पर वर्षों तक कार्यरत रहा. 21फरवरी 97को कोर्ट ने न्यूनतम वेतन भुगतान पर सरकार को निर्णय लेने का निर्देश दिया.
इसके पालन में चीफ इंजीनियर ने 3 सितंबर 97 को न्यूनतम वेतन भुगतान का आदेश दिया किन्तु सेवा नियमित करने से इंकार कर दिया. जिसे सेवा अधिकरण में चुनौती दी गई.
कहा कि सेवा नियमितीकरण नियमावली लागू होने से पहले से वह कार्यरत है. नियमावली के तहत वह नियमित किये जाने का हकदार है. अधिकरण ने दावा स्वीकार कर लिया और याची को नियमित करने का आदेश दिया. इसके खिलाफ याचिका पर कोर्ट ने नियमावली 2001के तहत सरकार को विचार कर निर्णय लेने का का आदेश दिया.