प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा में यमुना नदी में बिना शोधित गंदा पानी जाने देने के जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई करते का निर्देश दिया है. कोर्ट ने पूछा है कि गैर शोधित पानी का नदी में मिलने का क्या प्रभाव होगा. कोर्ट ने पूरी जिम्मेदारी से एसटीपी व ईटीपी मैनेजमेंट पर राज्य सरकार व नगर निगम से 23 सितंबर तक जवाब मांगा है.
यह आदेश कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एमएन भंडारी तथा न्यायमूर्ति एके ओझा की खंडपीठ ने महंत मधु मंगल दास शुक्ल की जनहित याचिका पर दिया है. कोर्ट ने कहा कि मथुरा में जितना सीवर का पानी निकलता है, एसटीपी की क्षमता उससे काफी कम है. इसलिए पूरे गंदे पानी का शोधन नहीं किया जा सकता. इसलिए यमुना नदी में गंदा पानी जा रहा है.
इससे पहले कोर्ट ने महाधिवक्ता से पूछा था कि नदी को गंदे पानी का टार्गेट क्यों बनाया जाता है. सरकार इसकी व्यवस्था क्यों नहीं करतीं. कोर्ट ने कहा कि याचिका की वर्षों से सुनवाई चल रही है. कानपुर नगर में अभी भी गंदा पानी गंगा में जा रहा है. जल निगम, जिलाधिकारी व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दाखिल हलफनामे विरोधाभासी हैं. इससे पता चलता है कि सिस्टम आपसी सहयोग से नहीं चल रहा.