प्रयागराजःइलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने शादी का झूठा वादा करके यौन संबंध बनाने की बढ़ती प्रवृत्ति को रोकने के लिए राज्य सरकार को एक स्पष्ट और मजबूत कानूनी ढांचा तैयार करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि पुरुष की वर्चस्ववादी इस मानसिकता से सख्ती से निपटना चाहिए कि 'महिलाएं भोग विलास के लिए हैं. ताकि महिलाओं में असुरक्षा की भावना पैदा न हो और लैंगिक असमानता को दूर करने के संवैधानिक लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके. यह टिप्पणी न्यायमूर्ति प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान की.
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कोर्ट ने कहा कि दुराचार की घटना से महिला के जीवन और मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. उसे गंभीर शारीरिक व मानसिक पीड़ा से गुजरना होता है. शादी करने का झूठा वादा कर यौन संबंध बनाना कानून में दुष्कर्म का अपराध घोषित किया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि आज कल यह चलन बन गया है कि अपराधी धोखा देने के इरादे से शादी का प्रलोभन देकर यौन संबंध बनाते हैं. देश की बहुसंख्यक महिला आबादी में शादी एक बड़ा प्रमोशन होता है और वे आसानी से इन परिस्थितियों का शिकार हो जाती हैं, जो उनके यौन उत्पीड़न का कारण बनता है. इस तरह के मामले दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं. क्योंकि अपराधी समझता है कि वह कानून का फायदा उठाकर दंड से बच जाएगा. इसलिए विधायिका के लिए आवश्यक है कि ऐसे मामलों से निपटने के लिए स्पष्ट और विशेष कानूनी ढांचा तैयार करें. जिससे अपराधी विवाह का झूठा वादा कर यौन संबंध बनाने से डरे.
दुष्कर्म की श्रेणी का अपराध माना जाए
कोर्ट ने कहा कि जब तक ऐसा कानून नहीं बन जाता, तब तक अदालतों को सामाजिक वास्तविकता और मानवीय जीवन की आवश्यकता को देखते हुए ऐसी प्रताड़ित महिलाओं को संरक्षण देना जारी रखना चाहिए. जहां परिस्थितियां ऐसा दर्शा रही हैं कि अभियुक्त कभी भी शादी का वादा पूरा नहीं करना चाहता था या वह इस प्रकार का वादा पूरा करने में सक्षम नहीं था. आरोपी या तो वह पहले से शादीशुदा था या फिर उसने अपनी जाति, धर्म, नाम आदि छुपा कर संबंध बनाए थे. ऐसे मामलों में दंड की व्यवस्था की जाए. कोर्ट ने कहा कि झूठा वादा कर यौन संबंध बनाने की प्रवृत्ति को गलत तथ्यों के आधार पर ली गई सहमति माना जाना चाहिए और इसे दुष्कर्म की श्रेणी का अपराध माना जाए. कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में अदालते मूक दर्शक नहीं बन सकती हैं और उन लोगों को लाइसेंस नहीं दिया जा सकता है जो मासूम लड़कियों का उत्पीड़न करते हैं और उनके साथ यौन संबंध बनाते हैं.
कोर्ट ने कानपुर के अभियुक्त की याचिका खारिज की
कानपुर के हर्षवर्धन यादव की आपराधिक अपील खारिज करते हुए न्यायमूर्ति प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि मौजूदा मामले में पीड़िता और अभियुक्त एक दूसरे को पहले से जानते थे. अभियुक्त ने शादी का वादा किया और लगातार शादी की बात और वादा करता रहा. जब पीड़िता ट्रेन से कानपुर जा रही थी तो आरोपी ने उससे मिलने की इच्छा जाहिर की और कोर्ट मैरिज के दस्तावेज तैयार करने की बात कह कर उसे होटल में बुलाया. जब पीड़िता होटल पहुंची तो आरोपी ने उससे यौन संबंध बनाये. यौन संबंध बनाने के तुरंत बाद आरोपी ने शादी करने से न सिर्फ इंकार कर दिया बल्कि पीड़िता को गालियां दी और जातिसूचक अपशब्द भी कहे. अर्जी में कहीं भी विवाह के लिए तैयार होने की बात नहीं की गई है. इससे पता चलता है उसने पीड़िता से यौन संबंध बनाने के लिए उस पर भावनात्मक दबाव डाला. जैसे ही अपने उद्देश्य में सफल हुआ तुरंत पीड़िता से शादी करने से इंकार कर दिया.
अभियुक्त और पीड़िता एक दूसरे को लंबे समय से जानते थे और उनके बीच आपसी सहमति से संबंध स्थापित हुआ था. याची को ब्लैकमेल करने के इरादे से पीड़िता ने झूठी शिकायत दर्ज कराई है. आरोपी पक्ष की इस दलील को कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया. इस मामले में पीड़िता ने कानपुर के कलेक्टर गंज थाने में दुष्कर्म और एसटी एससी एक्ट की धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया है.