प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के तहत होने वाले अपराधों में आरोपितों के जमानत प्रार्थना पत्रों पर नोटिस देने की समय सीमा तय कर दी है. कोर्ट ने कहा कि शासकीय अधिवक्ता कार्यालय को नोटिस देने के दसवें दिन जमानत अर्जी कोर्ट में पेश की जाएगी.
इस दौरान बाल कल्याण समिति और स्थानीय पुलिस रिपोर्ट तैयार कर सुनवाई के समय हाईकोर्ट में प्रस्तुत करेगी. सिद्धार्थनगर के जुनैद की जमानत मंजूर करते हुए न्यायमूर्ति अजय भनोट ने अपने विस्तृत आदेश में इससे संबंधित गाइडलाइन तय की है. उनका कहना था कि मुख्य भूमिका सह अभियुक्त की है. उस पर दुराचार अपहरण का आरोप नहीं है. कोर्ट ने कहा है कि शासकीय अधिवक्ता कार्यालय को जमानत अर्जी की नोटिस प्राप्त होने के तीन दिन के भीतर स्थानीय पुलिस अपने जिले की बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) को नोटिस दे. इसके बाद पांच दिनों के भीतर यह नोटिस पीड़ित बच्चे के परिवार वालों को उपलब्ध कराई जाए.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा जमानत प्रार्थना पत्र की सुनवाई के समय सीडब्ल्यूसी और स्थानीय पुलिस अपनी रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करे. जमानत प्रार्थना पत्र को नोटिस देने के बाद दस दिन का समय पूरा होने पर सुनवाई के लिए कोर्ट के सामने पेश किया जाए. कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक उत्तर प्रदेश को निर्दश दिया है कि इस आदेश का पालन सुनिश्चित करायें और अनुपालन के लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाए. जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नोडल अधिकारी नियुक्त किए जाए.
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कोर्ट ने सभी जिलाधिकारियों को भी यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि सीडब्ल्सूसी की रिपोर्ट जमानत प्रार्थना पत्र की सुनवाई के समय प्रस्तुत की जाए. इसमें लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जाए. इसके लिए एक डी जी थैंक के अधिकारियों को अधिकृत किया जाए. कोर्ट ने हाईकोर्ट की रजिस्ट्री को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि पीड़ित बच्चे के परिवार वालों को जमानत प्रार्थना पत्र में उनके नाम से पक्षकार न बनाया जाए. साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि पीड़ित बच्चे की पहचान से संबंधित कोई जानकारी उसका पता, आस पड़ोस आदि की जानकारी जमानत प्रार्थनापत्र में न दी जाए.