प्रयागराज: बाहुबली नेता और माफिया मुख्तार अंसारी के बेटे विधायक अब्बास अंसारी के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के मामले में दर्ज मुकदमे को रद करने से हाईकोर्ट ने इंकार कर दिया है. कोर्ट ने अब्बास अंसारी की ओर से इस मामले में दाखिल चार्जशीट और प्राथमिकी को रद करने की मांग खारिज कर दी है. अब्बास अंसारी की याचिका पर न्यायमूर्ति डीके सिंह ने सुनवाई की.
अब्बास अंसारी के खिलाफ मऊ के कोतवाली थाने में 3 मार्च 2022 को प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी. आरोप है कि उन्होंने विधानसभा चुनाव के दौरान एक चुनावी सभा में लोगों के बीच घृणा को बढ़ाने और हिंसा को भड़काने वाला भाषण दिया. अब्बास अंसारी ने अपने भाषण में कहा था कि "मैंने समाजवादी पार्टी अध्यक्ष से कहा है कि चुनाव जीतने के बाद 6 माह तक किसी का ट्रांसफर पोस्टिंग नहीं होगी, जो यहां है वह यही रहेगा , पहले हिसाब किताब होगा उसके बाद ट्रांसफर का सर्टिफिकेट जारी होगा". उसके इस भाषण पर पुलिस ने उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 171 (एफ) 506,186,189,153( ए) तथा 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज किया है.
इस मामले में पुलिस ने 11 मई 2022 को चार्जशीट दाखिल कर दी तथा स्पेशल कोर्ट एमपी एमएलए ने मामले पर संज्ञान लेते हुए 23 मई 2022 को अब्बास अंसारी को समन जारी किया है. चार्जशीट और प्राथमिकी को अब्बास अंसारी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. उनके अधिवक्ता की दलील थी कि अब्बास अंसारी के भाषण में ऐसा कुछ नहीं कहा गया है जिससे धारा 153 ए आईपीसी के तहत अपराध बनता हो. इस धारा में जाति, धर्म, भाषा, लिंग आदि के आधार पर लोगों के बीच वैमनस्यता फैलाने व हिंसा को बढ़ावा देने वाला शब्द इस्तेमाल किया जाता है जबकि अब्बास अंसारी ने अपने भाषण में जो कहा उसे यदि सही मान भी लिया जाए तो वह सरकारी अधिकारियों के लिए था ना कि आम जनता के लिए.
दूसरी और अभियोजन ने अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि जांच अधिकारी ने रिपोर्ट तैयार करके सरकार को अभियोजन स्वीकृति के लिए भेजी थी. 24 अगस्त 2022 को सरकार ने इसकी स्वीकृति दे दी तथा स्वीकृति आदेश को केस डायरी का है बनाया गया है. याची के खिलाफ इस तरह के सात और मामले हैं. पीठासीन अधिकारी ने भी उसको नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद कहा कि मामले के संदर्भ और याची द्वारा दिए गए भाषण के इरादे पर विचार करते हुए यह नहीं कहा जा सकता है कि 153 ए के तहत अपराध नहीं बनता है धारा 482 में हाईकोर्ट के पास सीमित अधिकार है और इसका उपयोग विलक्षण मामलों में किया जा सकता है. जहां प्राथमिकी और चार्ज सीट से कोई अपराध बनता ना साबित होता हो. याची के मामले में आईपीसी की धारा 153 ए के तहत अपराध बनता है या नहीं यह ट्रायल के दौरान अभियोजन द्वारा दिए गए साक्ष्यों पर निर्भर करेगा. इस स्तर पर याची को राहत देने का कोई आधार नहीं है. कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है.
ये भी पढ़ेंः Prayagraj में स्वामी प्रसाद मौर्या पर भड़के संत, बोले- अगर अखिलेश ने पार्टी से न निकाला तो होगा ये हाल