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वकीलों की पत्नी-बच्चों को भी इलाज मुहैया कराएगा हाईकोर्ट बार एसोसिएशन, मेडिक्लेम के लिए पांच मुकदमों की बाध्यता खत्म

हाईकोर्ट बार एसोसिएशन अब वकीलों की पत्नी-बच्चों को इलाज की सुविधा (Treatment to lawyers wives and children) मुहैया कराएगा. शुक्रवार को हाईकोर्ट बार एसोसिएशन (High Court Bar Association) ने सदस्य वकीलों को चिकित्सा और डेथ क्लेम संबंधी सुविधाओं के लिए वर्ष में न्यूनतम पांच मुकदमों की बाध्यता समाप्त कर दी.

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Etv Bharat पूर्व अध्यक्ष राकेश पांडे बबुआ हाईकोर्ट बार एसोसिएशन High Court Bar Association treatment to lawyers wives and children वकीलों की पत्नी बच्चों को इलाज की सुविधा

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 23, 2023, 9:26 AM IST

प्रयागराज:हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने सदस्य वकीलों को चिकित्सा और डेथ क्लेम संबंधी सुविधाओं के लिए वर्ष में न्यूनतम पांच मुकदमों की बाध्यता समाप्त कर दी. साथ ही योजना में सदस्य वकीलों की पत्नी एवं बच्चों को भी सम्मिलित करने का निर्णय (Treatment to lawyers wives and children) लिया है. हालांकि पूर्व पदाधिकारियों ने इस कार्यवाही को पूरी तरह गलत, शून्य और बार के बाईलाज के विपरीत बताया है.

शुक्रवार की हाईकोर्ट बार के अध्यक्ष अशोक कुमार सिंह की अध्यक्षता में हुई आमसभा का संचालन महासचिव नितिन शर्मा ने किया. उधर, पूर्व अध्यक्ष राधाकांत ओझा ने इस पूरी कार्यवाही को विधि शून्य करार देते हुए कहा कि बार एसोसिएशन के बाईलाज के अनुसार केवल सीक्रेट बैलेट में दो तिहाई बहुमत से ही बाईलाज में संशोधन किया जा सकता है. उनके कार्यकाल में आम सभा के प्रस्ताव पर सीक्रेट बैलेट से बाईलाज में केवल वकालत करने वाले वकीलों को ही चिकित्सा सहायता योजना व मताधिकार देने का संशोधन पास किया गया था.

इसके अनुसार चिकित्सा सहायता पाने के लिए वर्ष में कम से कम पांच मुकदमों का दाखिला अनिवार्य किया गया था ताकि नियमित वकालत न करने वाले सदस्य बार से अनुचित आर्थिक सहायता न ले सकें और सही लोगों को मदद मिल सके. श्री ओझा का कहना है कि यह संशोधन बार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए दो तिहाई बहुमत से किया गया था. उन्होंने बार एसोसिएशन की आम सभा में केवल प्रस्ताव से बाईलाज बदलने की कार्यवाही को गैर कानूनी बताते हुए इसका पुरजोर विरोध किया है. उन्होंने कहा कि यह बार एसोसिएशन के पैसे का दुरुपयोग व गबन करने की कवायद है, जो घोर निंदनीय है.

पूर्व अध्यक्ष राकेश पांडे बबुआ ने कहा कि बाईलाज में संशोधन का अधिकार आम सभा को है लेकिन दो तिहाई बहुमत की वोटिंग होनी चाहिए. सर्वसम्मति के प्रस्ताव से संशोधन की बात व्यवहारिक नहीं लगती. बाईलाज संशोधन के कारण कई अधिवक्ताओं के अचानक गंभीर रूप से बीमार होने पर पिछले साल पांच केस न होने के कारण बार एसोसिएशन से आर्थिक सहायता नहीं दी गई. इससे वकीलों में आक्रोश था. मांग की जाने लगी कि सहायता के लिए पांच मुकदमों की अनिवार्यता समाप्त की जाए. आरके ओझा का कहना है कि आनन फानन में आम सभा बुला ली गई, जबकि बाईलाज के अनुसार आम सभा की सूचना एक सप्ताह पहले दी जानी चाहिए. इसका भी पालन नहीं किया गया.

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