प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दूसरे के लिए सुरक्षित पद पर कार्यरत रहने और बाद में नियमित होने पर पेंशन आदि निर्धारण में अस्थाई सेवाएं जोड़ने से इंकार के आदेश को सही माना है. एकलपीठ द्वारा याचिका खारिज करने के आदेश के खिलाफ विशेष अपील खारिज कर दी गई है.
कोर्ट ने कहा कि याची की नियुक्ति सरप्लस कर्मचारियों के लिए आरक्षित पद पर अस्थाई रूप से की गई थी. एक माह की नोटिस पर कभी भी समाप्त की जा सकती है. सरप्लस कर्मचारी के न होने पर ही उसकी नियुक्ति हो सकती थी किंतु विभाग में 13 सरप्लस कर्मचारियों को समायोजित किया जाना बाकी था. बैक डोर से याची की नियुक्ति कर दी गई.
ऐसे में उसकी अस्थाई सेवाएं पेंशन आदि निर्धारण में नहीं जोड़ी जा सकतीं. विभाग ने पेंशन के लिए निर्धारित सेवा पूरी न होने से सेवानिवृत्त होने पर पेंशन आदि देने से इंकार कर दिया गया था. इसे चुनौती दी गई थी. यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी (Justice SP Kesarwani) तथा न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी (Justice Jayant Banerjee) की खंडपीठ ने जंगपाल की अपील को खारिज करते हुए दिया है.
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मालूम हो कि याची की नियुक्ति अस्थाई कर्मचारियों के रूप में एक अगस्त 1990 को सीएमओ लेबर मेडिकल सेवा सासनी गेट (CMO Labor Medical Services Sasni Gate) अलीगढ़ में वार्ड ब्वाय के रूप में की गई थी. उसे सेवा से हटा दिया गया. हाईकोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी. बाद में गठित कमेटी की रिपोर्ट पर उसकी सेवा को नियमित कर दी गई.
31 जनवरी 20 को सेवानिवृत्त हो गया. संयुक्त निदेशक आगरा ने 10 साल सेवा न होने के कारण पेंशन आदि देने पर आपत्ति की. कहा कि याची की नियुक्ति सेवा नियमों के तहत नहीं की गई थी, इसलिए अस्थाई सेवाएं नहीं जोड़ी जाएंगी. जब याची की नियुक्ति की गई थी उस समय 13 कर्मचारी सरप्लस थे. उन्हें समायोजित किया जाना बाकी था.
याची ने कहा कि प्रेम सिंह केस के फैसले के तहत अस्थाई सेवाएं पेंशन निर्धारित करने में जोड़ी जानी चाहिए. कोर्ट ने कहा प्रेम सिंह केस याची के मामले में लागू नहीं होगा. वह वर्कचार्ज कर्मचारी नहीं था. वह दूसरे के लिए आरक्षित पद पर कार्यरत था. उस पद पर बने रहने का उसे कानूनी अधिकार नहीं था. याची ने तथ्य छिपाया है. बैक डोर इंट्री है. दूसरे का हक छीना गया था. लास्ट कम फस्ट गो का सिद्धांत लागू होगा. याची की पेंशन की मांग नियमानुसार नहीं है.
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