प्रयागराज: संगम नगरी में 14 जनवरी से देश का सबसे बड़ा धार्मिक मेला शुरू होने जा रहा है. गंगा और संगम में आस्था रखने वाले करोड़ों लोग इस मेले में शामिल होने के लिए आने वाले दिनों में प्रयागराज पहुंचेंगे, लेकिन माघ मेला शुरू होने से चंद रोज पहले गंगा का रंग बदलने से साधु संतों में नाराजगी है. कारण यह है कि अब गंगा का रंग मटमैला लाल जैसा दिखने लगा है.
गंगा के रंग में बदलाव की जानकरी मिलने के बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी की टीम गंगा यमुना के जल की सैम्पलिंग करने में जुट गई है. टीम संगम के साथ ही गंगा और यमुना के जल के अलग-अलग स्थानों से नमूने लेकर जांच के लिए रोजाना भेज रही है.
नहाने लायक है गंगा जल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी प्रदीप विश्वकर्मा का कहना है कि गंगा का जल काला नहीं है. स्नान के लिए सही और पूरी तरह से सुरक्षित है, लेकिन गंगाजल आचमन व पीने के मानकों के अनुरूप फिलहाल नहीं है. अफसरों ने यह भी तर्क दिया कि लोग गंगा जल का लगातार सेवन कर रहे हैं. अफसरों का कहना है कि किसी भी जल के नहाने व पीने योग्य होने का अलग मानक होता है, जिसमें गंगा जल नहाने के मानक पर खरा उतरा है. अधिकारियों के मुताबिक इस समय गंगाजल की बीओडी मात्रा 2.5 से 3 के बीच है.
साधु-संतों में आक्रोश
माघ मेले के शुरू होने से चंद दिन पहले गंगा जल के रंग बिगड़ने से साधु-संत आक्रोशित हैं. इस तरह से गंगाजल के रंग बदलने से साधु संतों के साथ ही श्रद्धालुओं में भी नाराजगी है. यह पहला मौका नहीं है, इससे पहले भी माघ मेले के शुरू होने से पहले गंगाजल का रंग लाल व मटमैला होने की घटनाएं हो चुकी हैं. मेले से पहले गंगा जल के रंग बदलने को लेकर संतों में गहरी नाराजगी है.
मेले को भव्य बनाने के लिए सरकार जुटी
साधु-संतों का कहना है कि केंद्र और प्रदेश सरकार सनातन धर्म के इस मेले को भव्य बनाने के लिए हर तरह का प्रयास कर रही है. यही वजह है कि कोरोना महामारी के दौरान भी सरकार सावधानीपूर्वक माघ मेले का भव्य आयोजन करवा रही है, लेकिन सरकार के नेक इरादों को कुछ अफसर व दूसरे लोग बदनाम करने के साजिशन ऐसी लापरवाही करते हैं, जिससे माघ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं को ठेस पहुंचे और वह सरकार से नाराज हों.
गंगा जल पीने लायक हो या न हो, करेंगे पान
संतों का कहना है कि गंगा उनकी मां है. गंगा में उनकी आस्था है और मेले के दौरान मां गंगा के चरणों में रहने के लिए ही वह एक माह का साल भर इंतजार करते हैं. ऐसे में गंगाजल पीने के लायक हो या न हो, वह तो उसका महीने भर तक पान करेंगे.
श्रद्धालुओं की आस्था पर ठेस
माघ मेले से पहले गंगाजल को लेकर उठ रहे सवालों पर साधु-संतों और श्रद्धालुओं के साथ ही तीर्थ पुरोहित भी नाराज हैं. उनका कहना है कि मेले से ठीक पहले गंगाजल का रंग बदलने से मेले में आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था पर भी ठेस पहुंचती है. साधु-संतों के साथ पुरोहितों ने भी मांग की है कि जल्द से जल्द गंगाजल का प्रवाह तेज कर पर्याप्त और शुद्ध गंगाजल संगम पर उपलब्ध कराया जाए.