प्रयागराज: घोड़ों की दौड़ प्रतियोगिता में अक्सर हार-जीत का फैसला होता है, लेकिन प्रयागराज में घोड़े की एक ऐसी प्रतियोगिता भी होती है जिसमें न हार होती है न जीत. यहां फैसला इस बात पर होता है कि कौन सा घोड़ा कितने अच्छे सुर ताल से जुड़ा है. जी हां, हम बात कर रहे हैं श्रावण मास में होने वाली गहरे बाजी का. जहां घोड़ा पालने के शौकीन अपनी-अपनी दावेदारी पेश करते हैं कि किसने अपने घोड़े को कितना अच्छे से प्रशिक्षित किया है.
प्रयागराज में होने वाली गहरे बाजी का वर्षों पुराना नाता है. सम्राट हर्षवर्धन से लेकर मुगलकाल और अंग्रेज भी इस गहरे बाजी के शौकीन रह चुके हैं. जानकारों की माने तो गहरे बाजी का खास आकर्षण सिंध प्रांत के घोड़ों के कदम से पड़ा सुर ताल होता है. सिंध प्रांत के घोड़ों की एक अलग ही पहचान होती है. प्रतियोगिता में भाग लेने वाले घोड़ों का साल भर बच्चों की तरह पालन किया जाता है. उनके लिए खास तरह के ट्रेनर रखे जाते हैं, जो इन घोड़ों के पैरों की चाल निर्धारित करते हैं.
गहरे बाजी की इस प्रतियोगिता में घोड़ों की चार तरह की चाल शामिल होती है. पहली चाल को सिंधी माधुरी चाल कही जाती है, जो घोड़ों की सर्वश्रेष्ठ चाल है. दूसरी चाल घोड़े की चौटाला चाल है, जिसे घोड़े अपने पैर को जमीन पर चोट मारते हुए चलते हैं. तीसरी चाल धूल की चाल है, जिसमें घोड़ों के पैर ढोल बजाने जैसा सुर निकालते हैं और अंतिम घसीटा चाल है, जिसे आमतौर पर फाउल माना जाता है.