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नारी स्वावलंबन संबंधी अभिलेखों की प्रदर्शनी - prayagraj latest news

प्रयागराज में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिला सुरक्षा, स्वालंबन एवं सशक्तिकरण संबधी अभिलेखों की प्रदर्शनी आयोजित की गई. वहीं प्रदर्शनी के माध्यम से शिशु, कन्या वध जैसी अमानवीय प्रथा और इसके रोकथाम के अभिलेख इस प्रदर्शनी में दर्शाए गए.

महिला सशक्तिकरण संबधी अभिलेखों की प्रदर्शनी .
महिला सशक्तिकरण संबधी अभिलेखों की प्रदर्शनी .

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Published : Mar 9, 2021, 10:49 AM IST

प्रयागराज:अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर मिशन शक्ति के क्षेत्रीय अभिलेखागार संस्कृत विभाग प्रयागराज ने प्रदर्शनी का आयोजन किया. प्रदर्शनी में महिला सुरक्षा, स्वालंबन एवं सशक्तिकरण संबधी विषयों पर चर्चा हुई. वहीं प्रदर्शनी के माध्यम से शिशु, कन्या वध जैसी अमानवीय प्रथा और इसके रोकथाम के अभिलेख इस प्रदर्शनी में दर्शाए गए.

महिला सशक्तिकरण संबधी अभिलेखों की प्रदर्शनी .

'शारदा अधिनियम' का भी प्रदर्शन
प्रदर्शनी के माध्यम से 19वीं शताब्दी में समाज सुधारकों की तरफ से विवाह पद्धति, दहेज प्रथा, बाल विवाह निषेध, तलाक संबंधी अधिकारों की वकालत जैसे विषयों पर अभिलेख प्रदर्शनी में दिखाए गए. प्रदर्शनी में बाल विवाह की कुरीतियों पर चोट करने के लिए हर विलास शारदा द्वारा प्रस्तुत 'शारदा अधिनियम' का भी प्रदर्शन किया गया.

सशक्तिकरण संबधी अभिलेखों की प्रदर्शनी .

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इस प्रदर्शनी में मुख्य रूप से कन्या शिशु वध प्रथा को रोकने के लिए अंग्रेजी सरकार के 1739 से 1870 के मध्य बनाए गए नियम, 1992 का अभिलेख, बाल विवाह रोकने संबंधी अधिनियम और उससे जुड़े 1927 का अभिलेख दर्शाया गया. प्रदर्शनी में हिंदू विधवाओं के गुजारा भत्ता, महिलाओं के नौकरी अधिकार और पुत्रियों को संपत्ति में अधिकार देने संबंधी अधिनियम से जुड़े अभिलेखों को प्रदर्शनी में लगाया गया.

यह था बाल विवाह प्रतिबन्ध अधिनियम 1929
बाल विवाह प्रतिबन्ध अधिनियम 28 सितंबर 1929 को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ऑफ इंडिया में पारित हुआ. लड़कियों के विवाह की आयु 14 वर्ष और लड़कों की 18 वर्ष तय की गई, जिसे बाद में लड़कियों के लिए 18 और लड़कों के लिए 21 कर दिया गया. इसके प्रायोजक हरविलास शारदा थे, जिनके नाम पर इसे 'शारदा अधिनियम' के नाम से जाना जाता है. यह एक अप्रैल 1930 को लागू हुआ. यह काननू केवल हिंदुओं के लिए नहीं, बल्कि ब्रिटिश भारत के सभी लोगों पर लागू होता था. यह भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन का परिणाम था. ब्रिटिश अधिकारियों के कड़े विरोध के बावजूद, ब्रिटिश भारतीय सरकार द्वारा कानून पारित किया गया, जिसमें अधिकांश भारतीय थे.

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